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क्यों हरदम तलाशे ग़ैर सभी, तू बन अपना ख़ुदा

हरदम तलाशे गैर में रहते हैं सभी, डरते हैं कहीं खुद से मुलाकात ना हो जाए, ये रिश्ते तुम्हारे मेरे, देते हैं सुकून बहुत, पुराने खुद की याद मुझे दिला जाएं।

हरदम तलाशे ग़ैर में रहते हैं सभी, डरते हैं कहीं खुद से मुलाकात ना हो जाए, ये रिश्ते तुम्हारे मेरे, देते हैं सुकून बहुत, पुराने खुद की याद मुझे दिला जाएं।

हरदम तलाशे ग़ैर में रहते हैं सभी,
डरते हैं कहीं ख़ुद से मुलाकात ना हो जाए।
ये झूठे कह कहे लगते हैं भले,
टूटे दिल का सच कहीं बाहर ना छलक जाए।

ये रिश्ते तुम्हारे मेरे, देते हैं सुकून बहुत,
कुछ देर को ही सही,
पुराने ख़ुद की याद मुझे दिला जाएं।

वो रिश्ते जो थे उम्मीदों से भरे,
पढ़ सके नहीं इन लफ़्ज़ों को,
ना ही इन आंखों का दर्द समझ पाए
हालत तुम्हारी मेरी लगती है एक ही मुझे,
शायद तभी तो दिल से,
ये दिल के तार हैं जुड़ पाए।

क्यों ना फिर हों मुकम्मल हम खुद से ही,
ये ज़रूरतों के सिलसिले,
यहीं क्यों ना थम जाएं
न बना ख़ुदा, तब तक किसी को अपना,
कि जब तक वो तेरी दुआ पर ना पिघल जाए।

मूल चित्र : Unsplash 

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