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सूरत अग्निकांड – अपनों का, सपनों का अग्निकांड

इन सभी बच्चों में शीतल भी थी। उसके मुंह से लगातार 'मम्मी-मम्मी' निकल रहा था। वह नहीं जानती थी कि हर दुःख से दूर रखने वाली उसकी मम्मी यहां नहीं है। 

इन सभी बच्चों में शीतल भी थी। उसके मुंह से लगातार ‘मम्मी-मम्मी’ निकल रहा था। वह नहीं जानती थी कि हर दुःख से दूर रखने वाली उसकी मम्मी यहां नहीं है। 

“दिन के दस बज गए! अरे! दिन के दस बज गए हैं, अब तो उठ जा शीतल”, माँ ने उसे हिलाते हुए कहा।

शीतल ने कहा, “अभी कुछ ही दिन हैं मेरे पास सोने के लिए, फिर तो स्कूल शुरू हो जाएंगे। फिर वही पांच बजे उठना पड़ेगा मुझे। थोड़ी देर और सोने दो ना माँ।”

“फिर तेरी कोचिंग का क्या?” मन मारते हुए शीतल उठ ही गई।

माँ ने कहा, “नाश्ता कर लो ढोकले बनाये हैं।”

“वाओ! मेरे फेवरेट ढोकले! यम्मी!”

वह ढोकले खाकर नहाने चली गई और माँ खाना बनाने में व्यस्त हो गई।

खाने की टेबल पर शीतल ने कहा, “माँ, परसों मेरा जन्मदिन है, अपन खूब सारी मस्ती करेंगे। और मैं उन तीनों ड्रेस में से वह वाइट वाला ड्रेस पहनूंगी।”

“हाँ बाबा तेरा जो मन करे तू पहनना।”

“नहीं माँ, मैंने इस बार स्पेशल प्लानिंग की है। यह मेरा सत्रहवाँ बर्थडे है। अगले साल मैं अठारह साल की हो जाऊंगी। सोचो, मैं भी वोट दे सकूंगी! आप मुझे अगले साल स्कूटी गिफ्ट करना। पर इस बार मुझे मोबाइल चाहिये।”

“ये सब तेरे पापा जाने, क्या देना है, क्या नहीं। तू तो मुझे यह बता कि क्या स्पेशल बनाऊं उस दिन तेरे लिए।”

“आप जो बनाओगी, खा लूंगी।”

“मेरी प्यारी बेटी! चल अब, आर्ट क्लास के लिए तैयार हो जा। कितने बजे है क्लास?”

“तीन बजे।”

लगभग पौने तीन बजे शीतल आर्ट क्लास के लिए निकली। मां ने कहा, “जल्दी लौट आना बेटा, जनमदिन की तैयारी के लिए समान खरीदने अपन को बाजार जाना है। तेरे दोस्तों के लिए रिटर्न गिफ्ट्स खरीदने हैं।”

शीतल ने कहा, “ओके! आप मेरे लिए स्पेशल लस्सी बनाना। मैं आकर पियूंगी, फिर चलेंगे।”

“ठीक है बेटा।”

शीतल सूरत के तक्षशिला कॉमप्लेक्स मे पढ़ती थी। उसके सारे दोस्त उसका इंतजार कर रहे थे। सब आपस में  बर्थडे गर्ल को क्या गिफ्ट देना है, क्या ड्रेस पहनना है, चर्चा कर रहे थे। शीतल के पहंचते ही सब क्लास में चले गए।

करीबन चार बजे के आसपास, सब इधर-उधर दौड़ते हुए दिखे। साथ में दिखा धुआँ! पहले तो सभी ने सोचा, ‘यूं ही अफरा-तफरी मची है’, पर थोड़ी देर में आग की लपटें दिखीं। किसी को समझ में नहीं आया क्या करें, क्या ना करें। आग बड़ा रूप लेती जा रही थी। नीचे से कुछ बच्चे दौड़ते ऊपर आ रहे थे, और ‘आग आग’ चिल्ला रहे थे।

किसी को कुछ निर्णय लेते नहीं बन रहा था। जो लगभग बाहर की तरफ थे, वह बाहर निकल गए, और जो अंदर की तरफ थे,  वह ऊपर चढ़ गए बिना यह सोचे आग हमेशा ऊपर की तरफ बढ़ती है। और यही गलती उनके लिए भारी पड़ी। इन सभी बच्चों में शीतल भी थी। उसके मुंह से लगातार डर के मारे ‘मम्मी-मम्मी’ निकल रहा था। वह नहीं जानती थी की हर दुःख से दूर रखने वाली उसकी मम्मी यहां नहीं है, वह तो घर में उसका इंतजार कर रही है।

शीतल घबरा गई थी। शीतल ने देखा आग की लपटें बढ़ती चली जा रही हैं। तभी उसकी दो सहेलियां वहीं गिर पड़ीं।  शीतल का दिमाग सुन्न हो चुका था। उसने बाहर की तरफ देखा। आग बुझाने वाली गाड़ी पहुंच चुकी थी, पर शायद इन बच्चों के पास इतना समय नहीं था। कुछ बच्चों ने अपनी जान बचाने के लिए खिड़की से छलांग लगा दी। शीतल कुछ समझ नहीं पा रही थी कि रूके या वह भी छलांग लगा दे।

शीतल की सहेली स्नेहा, अस्थमा की मरीज़ थी। वह पसीने से तर-बतर लगातार हाँफ रही थी। धुएं के कारण उससे साँस नहीं ली जा रहा थी। शीतल ने उसे पानी पिलाने के लिए अपनी गोदी में उसका सर रखा, स्नेहा ने एक झलक शीतल को असहाय नजरों से देखा जैसे बचा लेने की विनती कर रही हो। मगर कुछ पलों में ही उसकी सांसे टूट गईं। शीतल ने पूरी ताकत से उसे हिलाया पर स्नेहा का शरीर एक तरफ लुढ़क गया।

शीतल घबराहट के मारे समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे। इधर-उधर सारे कमरे में उसके दोस्त निढाल पड़े थे। जिनमें थोड़ी बहुत जान बची थी, वह खिड़कियों से कूद रहे थे। शीतल स्तब्ध कोने में खड़ी हो गई। आंख बंद करके, अपने पापा और माँ का चेहरा याद किया। उसे लग रहा था कि शायद अब उनसे कभी नहीं मिल पाएगी। हिम्मत करके वह खिड़की की तरफ आई। नीचे झांका तो देखा, उसके बचपन के दोस्त ईशान का निर्जीव शरीर पड़ा था। उसके हाथ-पैर फूल गए वह कूदने का साहस नहीं कर पाई, कुछ देर रोती हुई वहीं पर खड़ी रही। तभी उसे दूसरी मंजिल से जिम चलाने वाले सर की आवाज़ आई। वह ज़ोर-ज़ोर से उसका नाम पुकार रहे थे, और उसे नीचे की तरफ आने का इशारा कर रहे थे।

वो कुछ समझ नहीं पा रही थी। उसने कहा, “सर, आप चले जाइए। मैं शायद नहीं बच पाऊंगी।”

सर ने कहा, “मैं हूं, तुम आओ।”

तभी उन्होंने खिड़की पर खड़ी निधि को सहारा देकर नीचे की तरफ उतारा। शीतल ने देखा निधि बच गई है। उसका विश्वास बढ़ा और खिड़की पर चढ़कर, वह भी नीचे की तरफ सरकने लगी। मगर नीचे पैर नहीं पहुंचने के कारण वह बुरी तरह घबरा गई।

उसने सर से कहा, “सर, मेरा पैर नहीं पहुंच रहा है और मेरे हाथ भी छूट रहे हैं। इस धुएँ में दम घुट रहा है, पर मैं जीना चाहती हूँ। सर, मुझे प्लीज़ बचा लीजिए।”

सर ने कहा, “शीतल, हिम्मत नहीं हारना। मैं तुम्हारी तरफ आ रहा हूं।”

शीतल की आंखे बंद होने लगीं। उसे सर आते हए दिख रहे थे। धुंधली-धुंधली आंखों से अचानक पीछे की तरफ माँ खड़ी दिखाई दी, हाथों में सफेद ड्रेस लिए हुए, और पूरी बाहें फैला के चिल्ला रही थी, ‘हिम्मत मत हार!’  मगर शीतल का हाथ खिड़की से छूट चुका था। उसकी आंखों से गरम-गरम दो बूंद आंसू टपक रहे थे। उसे लग रहा था वह सुरक्षित है। हर बार ऐसा होता है कि जब भी वह झूले से या कहीं से भी गिरने वाली होती है, पता नहीं पापा कब वहां पहुंचकर उसे बचा लेते हैं। वह हर बार पापा की गोद में सुरक्षित होती है। उसने गिरते हुए एक बार फिर पूरी ताकत से चिल्लाया, “पापा मुझे बचा लो!”

इधर घर में शीतल की माँ टीवी देख रही थी। चैनल चेंज करते हुए अचानक लोकल न्यूज़ पर नज़र पड़ी। चारों तरफ आग की लपटों से घिरा तक्षशिला कॉम्पलेक्स। ‘कोचिंग सेंटर में लगी आग में बीस छात्रों की मौत’ हैड लाईन पढ़ते ही वो अपना आपा खो बैठी। किसी तरह वह अपने पति के साथ घटना स्थल पहुंची।

कुछ खून से सने,  कुछ जले हुए शवों में से शीतल की लाश को ढूंढते हुए पापा ने कहा, “शीतल ने क्या पहना था?”

शीतल की माँ ने शीतल के बेजान जिस्म को अपनी गोद में समेटते हुए धीरे से बुदबुदाया, “व्हाईट ड्रेस।”

दोस्तों, 24 मई को सूरत में हुए अग्नि-कांड में कई घरों के चिराग हमेशा-हमेशा के लिए बुझ गए। ये विवरण एक काल्पनिक प्रयास मात्र है, ताकि उन परिवारों के दर्द के साथ हमदर्दी जता सकें।

केवल सुविधाजनक जीवन देकर बच्चों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरा हुआ ना समझें। बल्कि, विपरित परिस्थितियों में अपने विवेक से काम लेना, सही निर्णय लेना भी सिखाएं । एन.सी.सी, स्पोर्ट्स में भाग लेकर उन्हें  शारीरिक तौर पर भी मजबूत बनाएं।

अंत में सभी बच्चों को मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि। उनके परिवारों को ईश्वर इस दुःख को सहने की शक्ति दे।

मूल चित्र : Google

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