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ऐसा ही होता है रिश्ता दोस्ती का

मैं चाय बनाने जा ही रही थी कि वो बोल उठी मैंने चाय पीना छोड़ दिया है। उसकी हंसी से मुझे पता चल गया कि कितनी बेस्वाद चाय बनाती थी मैं।

मैं चाय बनाने जा ही रही थी कि वो बोल उठी मैंने चाय पीना छोड़ दिया है। उसकी हंसी से मुझे पता चल गया कि कितनी बेस्वाद चाय बनाती थी मैं।

रिश्ते शब्द सुनते या बोलते समय कई नाते जहन में आते हैं लेकिन दोस्ती उसकी तो बात ही अलग है। हम दोस्त उसे कहते हैं जिससे बात करते समय रुकना या रुककर सोचना ना पड़े। यानी उसे हमारे छोटे से तिल की भी खबर हो, समझ गए ना।

बात उन दिनों की है, जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी भैया के दोस्त की बहन जो कि मेरी भी सहेली थी, कॉलेज के बाद ट्यूशन क्लास में दो घण्टे के गैप की वजह से रोज़ हमारे घर समय बिताने आती थी। मज़ा तो बहुत आता था उससे बात कर के। वो आती और मैं चाय बनाकर ले आती। चाय पीते और बातें करते दो घण्टे कैसे बीत जाते, पता ही नहीं चलता था। एक साल यूँ ही बीत गया और कॉलेज खत्म हो गया।

एक दिन अचानक वह फिर आयी, तो मैं चाय बनाने जा ही रही थी कि वो बोल उठी मैंने चाय पीना छोड़ दिया है। उसकी हंसी से मुझे पता चल गया कि कितनी बेस्वाद चाय बनाती थी मैं, पर मैं चाय बनाती और वह पी जाती। शायद इसी का नाम दोस्ती है।

मूलचित्र : Pixabay

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