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मेरी हिंदी की गूँज विदेशी धरती तक – हिंदी मेरा अभिमान

हमारे जीवन में हमारी भाषा हिंदी का वही स्थान है जो ब्रम्हाण्ड में सूर्य का है, अर्थात हिंदी बोलने वालों की पूरी दुनिया हिंदी के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

हमारे जीवन में हमारी भाषा हिंदी का वही स्थान है जो ब्रम्हाण्ड में सूर्य का है, अर्थात हिंदी बोलने वालों की पूरी दुनिया हिंदी के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

हमारे जीवन में हमारी भाषा हिंदी का वही स्थान है जो ब्रम्हाण्ड में सूर्य का है, अर्थात हिंदी बोलने वालों की पूरी दुनिया हिंदी के इर्द-गिर्द ही घूमती है। हम हिंदी में ही सोचते हैं और हिंदी में ही एक दूसरे तक अपने मनोभाव पहुँचाते हैं। हिंदी काफी देशवासियों को अत्यन्त प्रिय है। इसके साथ-साथ अब विदेशों में भी कई जगह ‘स्वागतम्’ और ‘नमस्कार’ के बोर्ड हिंदी में लिखे दिख जाते हैं । जब हिन्दी के प्रशंसक हमें विदेशों में भी मिलते हैं तो हमारा मन गौरवानुभूति से भर उठता है । 

ऐसी ही एक घटना कुछ महीनों पूर्व मेरे साथ घटित हुई जब मैं अपने परिवार के साथ यूरोप की यात्रा पर गई थी। इटली के रोम शहर में हम दिन भर घूमने के कारण बेहद थक चुके थे और वापस होटल जाने के लिये टैक्सी की तलाश में थे। तभी एक टैक्सी हमारे पास आ कर रुकी। ड्राइवर ने खिड़की से सिर निकाल कर पूछा, “इंडियन?” हमने सहमति में सिर हिलाया। वह ड्राइवर तुरंत टैक्सी से उतरा और हिन्दी में बोला, “नमस्ते, कहाँ जाना है?” परदेस में किसी विदेशी से हिंदी सुन कर हम अवाक् रह गये। अनायास ही उसके मुँह से हिंदी सुनकर मैं बोल पड़ी, “तुमको हिंदी आती है भैया!” जवाब में वह मुस्कुराया और बोला, “कहाँ जाना है बहन?” हमने उसे अपने होटल का नाम बताया और तुरन्त ही टैक्सी में बैठ गये। 

अपने एक घंटे के सफ़र के दौरान लॉरेंस ने (जी हाँ, यही नाम था उसका) हमसे ढेर सारी बातें कीं। लारेंस कहने लगा, “मुझे हिन्दी भाषा की मिठास बहुत पसंद है। हिंदी और भारत में मेरी रुचि महात्मा गाँधी को जानने के बाद उत्पन्न हुई। मुझे भारत से प्यार है। मैं सात साल पहले, पहली बार भारत गया था। मैंने भारत के कई शहर देखे हैं। जब मैं पहली बार भारत गया तो लगभग तीन महीने तक बनारस में रहा। वहीं मैंने अपने एक दोस्त से हिंदी सीखी। मुझे हिंदी बोलना तो पूरी तरह से आता है पर लिखना नहीं। मैं गूगल की सहायता से हिंदी लिखना भी सीख रहा हूँ। मुझे हिंदी फ़िल्मी गाने बहुत पसन्द हैं। आप लोग क्या सुनना पसन्द करेंगे?”

फिर उसने किशोर कुमार के गानों का कैसेट लगा दिया। लारेंस ने यह भी बताया कि भारत में उसके कई दोस्त हैं और वह साल में दो बार भारत ज़रूर आता है। 

लारेंस ने हमसे भारतीय राजनीति, संगीत, खान-पान और भारतीय परंपराओं के बारे में ढेर सारी बातें की। इन बातों में समय कैसे व्यतीत हो गया पता ही नहीं चला। हम होटल पहुँच कर जब उसे पैसे देने लगे तो उसने अपने हाथ जोड़ दिये और बोला, “आप लोग इतने प्यारे से देश भारत से आए हैं, आप सब के साथ मैं हिंदी में बात कर पाया। बस समझिये आपने मुझे टैक्सी का किराया दे दिया। अब आप कुछ यूरो देकर कृपया मुझे शर्मिन्दा मत कीजिये।”

लारेंस का हिंदी और भारत प्रेम देख कर हम अभिभूत थे। सच, उस दिन मुझे अपनी भाषा हिंदी पर जिस अभिमान और गर्व का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में ढालना बेहद कठिन है । हिंदी ने न केवल हमें, अपितु विदेशियों को भी अपने स्नेह बंधन में बाँध रखा है।

मूल चित्र : Pixabay

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