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हिन्दी मेरा अभिमान – मेरा गर्व, मेरा सम्मान, मेरी सोच, मेरा ज्ञान है

मुझे विदेशी भाषाओं से नफरत नहीं। हम चाहे कितना भी घूम लें, सुकून तो घर आकर ही मिलता है, वैसा ही हिन्दी में एहसास है। हिन्दी के लिए क्या बताऊँ, वो तो मां है!

मुझे विदेशी भाषाओं से नफरत नहीं। हम चाहे कितना भी घूम लें, सुकून तो घर आकर ही मिलता है, वैसा ही हिन्दी में एहसास है। हिन्दी के लिए क्या बताऊँ, वो तो मां है!

रग-रग में जो लहू जैसी बहती वो हिन्दी है

मेरी सोच मेरी समझ मेरा ज्ञान वो हिन्दी है

मातृभाषा वो चमकते रहे सदा

मेरा गर्व, मेरा सम्मान, अभिमान वो हिन्दी है

जी हां, हिन्दी मेरी रग-रग में शुरू से ही थी, पर एक दिन जब किसी ने सबके सामने ये कह कर तारीफ की कि ये हिंदी में बहुत अच्छा लिखती हैं, तो जैसे पंख लग गए थे। सोसाइटी में सबने सम्मानित किया और कहा कि हमारे बच्चों के लिए हिंदी दिवस का लेख आप ही लिखिए।

स्मृति पटल पर सब कुछ वापस दौड़ पड़ा। मेरा जन्म महानगर में हुआ था, घर पर पापा को हिन्दी में कविता, कहानी, नाटक, बचपन से ही लिखते देखा। बचपन से ही हिन्दी में रुचि थी, और सभी भाषाओं को सीखने की ललक। पर हिन्दी रग-रग मे तब तक फैल चुकी थी जब तक सरस्वती विद्या मंदिर से स्कूल खत्म हुआ। स्नातक खत्म होने तक लत लग चुकी थी, विद्या भवन महाविद्यालय की लाइब्रेरी में कोई किताब ना बची जिसे हम पी ना गए हों। हिन्दी में पहचान बन रही थी, वाद-विवाद, लेखन प्रतियोगिता, अखबार, सुमन सौरभ, नंदन में प्रकाशित भी हुई।

शादी के बाद जब मुंबई वापस आई तो स्नातकोत्तर प्रबंधन एम बी ए (एच आर) से करते हुए हिन्दी से दूरी हो गई, फिर कान्वेंट स्कूल में बेटे को पढ़ाते हुए एहसास हुआ की हिन्दी को उस इज़्ज़त नहीं देखते अब।

स्कूल से ये पैगाम आता था कि ‘आप घर पर हिन्दी ना बोलें बच्चे की भाषा खराब हो जाएगी।’ बुरा लगता था ऐसे फरमान सुनकर। अपनी भाषा की इज़्ज़त नहीं कर पाएंगे तो क्या करेंगे? आज जब अपने नेता, प्रधानमंत्री को विदेशों में जाकर हिन्दी में बात करते देखती हूँ तो सीना गर्व से भर जाता है। हिंदी के लिए क्या बताऊँ, वो तो मां है! ससुराल चले भी जाओ तो भी और याद आती है और प्यार करती है।

आज फेसबुक, व्हाटसप और इंस्टा ग्राम पर कई हिन्दी लेखन समुह है जिनके साथ नियमित जुड़ी हुई हूं और अपनी मातृभाषा में लिखती हूँ, पढ़ती हूँ। मुझे विदेशी भाषाओं से नफरत नहीं, पर जैसे हम चाहे कितना भी घूम लें, सुकून तो घर आकर ही मिलता है, वैसे ही हिन्दी में एहसास है, अपनी भावनाओं को हम अच्छे से समझा सकते हैं।

आज मैं उन सभी के लिए एक जवाब हूं जो ये समझते हैं की ज्यादा पढ़ी-लिखी है तो अंग्रेजी बोलने में ही इज़्ज़त है। मेरे लिए हिन्दी मेरा अभिमान है, सम्मान है, स्वाभिमान है। हमें दुनिया के किसी भी कोने में रहने के बाद भी माँ और मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए।

मूल चित्र : Unsplash 

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Sushma Tiwari

Name sushma, somewhere it means "Gift of God",a nature lover, has spiritual believes. Born in "sapno in nagari" Mumbai,originally from Bihar. Currently living in Mumbai. Travelled and studied in many cities of India read more...

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