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मैं ब्राह्मण परिवार से हूँ और मैंने एक अनुसूचित जाती के जने से शादी की है और ये बात हमारे समाज में आज भी बहुत बड़ी बात है #noregrets
मेरी शादी घर में एक साल के संघर्ष के बाद अभी कुछ पांच महीने पहले हुई। शादी से पहले घर का माहौल बिल्कुल भी ठीक नहीं था। मेरे पापा इस शादी के सख्त ख़िलाफ़ थे। उनकी वजह मैं समझ सकती हूँ लेकिन उस वजह का साथ नहीं दे सकती थी। मैं ब्राह्मण परिवार से हूँ और मैंने एक SC यानि अनुसूचित जाती के जने से शादी की है। ये बात हमारे समाज में आज भी बहुत बड़ी बात है।
एक साल घर का माहौल बिल्कुल भी अच्छा नहीं था। जब मैंने अपने पिता को बताया कि मैं इस शख़्स से शादी करना चाहती हूँ तो वो बहुत खुश थे। उन्होंने मुझसे सबसे पहले यही सवाल पूछा कि उनकी जाति क्या है। उन्हें किसी और जाति से कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन एक SC परिवार में अपनी बेटी को देना उनके लिए असंभव सा था। उन्होंने मना कर दिया। मेरी माँ भी राज़ी नहीं थीं और ना ही मेरी बड़ी बहन। हर बार जब भी मैं घर जाती तो घर का माहौल इतना अजीब होता था कि मेरे लिए एक दिन भी वहां रहना मुश्किल हो जाता था। मेरी माँ मुझे समझाती रहती थी और मेरे पिता ये उम्मीद लगाकर बैठे थे कि शायद मैं इस शादी का ख्याल छोड़ दूंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ऐसा नहीं है कि मैं अपने माता-पिता को दुःखी करके ज़िंदगी का इतना बड़ा फ़ैसला करना चाहती थी लेकिन ये मेरे पूरे जीवन का सवाल था जिसे तय करने का मुझे पूरा अधिकार मिलना चाहिए। कुछ महीने बीत गए और इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई। दूसरी तरफ़ मेरे पति के घर पर सब राज़ी तो थे लेकिन मेरे परिवार की हामी ना मिलने की वजह से वो बस इंतज़ार कर रहे थे।
इन परिस्थितियों में मेरा संयम लगभग टूट चुका था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। मुझे अपने पिता की रज़ामंदी से शादी करने में परेशानी नहीं थी लेकिन मैं शादी ना करने के लिए उनकी वजह से गुस्सा थी। मैं आज की लड़की हूं और खुले विचारों वाली हूं। मैं जातिवाद, ऊंच-नीच इन सब चीज़ों में विश्वास नहीं रखती हूं। ये हम लोग ही हैं जिन्होंने बस अपने फायदे के लिए समाज को जाति, रंग के नाम पर बांट दिया है। भगवान ने सभी को एक सरा बनाया है पंचतत्वों से और सभी अंत में उसी ज़मीन में मिल जाएंगे तो ये भेदभाव किस लिए। मन में आपके दूसरों के लिए मैल है लेकिन कहने को आप पंडित हैं तो क्या फायदा। मन, कर्म और वचन साफ रखें तो ही आप सबसे उत्तम इंसान हैं। हमारे पुराणों में भी यहीं कहा गया है कि कर्मों से ही इंसान की पहचान होती है, कुल से नहीं।
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।
कहने को तो ये सब कहते हैं लेकिन असल ज़िंदगी में अमल नहीं करते। लेकिन मुझे मेरे पिता की ही परवरिश ने इतने खुले दिमाग का बनाया था। मैंने कभी उनके मुंह से ये ऊंच-नीच की बातें सुनी ही नहीं थी। इसलिए जब ये सब हो रहा था तो मुझे अफ़सोस हो रहा था। कई दिन मैंने कुछ नहीं कहा। इस बीच मेरी बड़ी बहन भी मुझे कहती थी कि इज्ज़त चली जाएगी, रिश्तेदार और पड़ोसी क्या कहेंगे। लेकिन मैं बस यही कहती थी कि मैं ऐसा कोई काम नहीं कर रही हूं जिससे मेरे परिवार की इज्ज़त चली जाए और ना ही मैं कोई गलत कदम उठा रही हूं। मैंने ये भी कह दिया था कि अगर आप नहीं चाहते तो मैं ये शादी नहीं करूंगी। ये लड़ाई सिर्फ अपनी पसंद की शादी करने के लिए नहीं थी बल्कि उन विचारों की थी जिन्हें मैं ख़ुद नहीं मानती।
मैंने फिर साहस बटोरा अपने पिता से बात करने का लेकिन इस बार बात इतनी बढ़ गई कि उन्होंने कह दिया कि मैंने ही कुछ ऐसे कर्म किए होंगे कि तेरे जैसी बेटी मिली है। मैं उस समय अपने आंसू रोक नहीं पाई लेकिन मेरा बस यही फ़ैसला था कि मैं अब शादी करूंगी ही नहीं। मेरे घरवालों ने कोशिश की मुझे किसी और से मिलवाने की लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया। मैं घर में अच्छे से रहती थी लेकिन उन्हें बस ये कहती थी कि अगर मैं आपके फ़ैसले का सम्मान करती हूं तो बस आप मेरे फ़ैसले का करिए। कई और महीने बीतने पर मेरी माँ, मासी और मेरी बहन को ये समझ आने लगा था कि मैं अपना फ़ैसला बदलने वाली नहीं हूं। इसलिए उन्होंने पापा को मनाने की कोशिशें शुरू कर दी। इस पूरी लड़ाई में मेरा सबसे ज्यादा साथ मेरी मासी ने दिया। उसने पहले माँ को मनाया और उन्हें मेरी बड़ी बहन का उदाहरण देकर समझाया।
दरअसल मेरी इकलौती बड़ी बहन की शादी पापा-मम्मी की ही मर्ज़ी से ही हुई थी आज से पांच साल पहले। वो ठीक है, लेकिन फिर भी उसके ससुराल में वैसा माहौल नहीं है जैसा शायद मेरे माता-पिता ने सोचा था। उस पर ढेर सारी ज़िम्मेदारियां है जिनके बोझ तले वो पिस गई है। बड़े दामाद से उम्मीद थी कि वो बेटा बनकर रहेगा लेकिन वैसा भी नहीं हुआ। इसलिए मासी ने माँ को कहा कि आपने बड़ी की अपनी मर्ज़ी से शादी करा दी है, छोटी को करने दो अब। किसी तरह माँ ने पिता जी को मना लिया। जिसके बाद दोनों परिवार मिले। पापा को उनके परिवार से मिलकर अच्छा लगा लेकिन फिर भी उन्हें जाति वाली बात बार-बार परेशान कर रही थी। आज भी कभी-कभी कर जाती है। ये तय हुआ कि शादी का फंक्शन छोटा सा ही होगा ताकि रिश्तेदारों और बाकी लोगों को ना पता चले। मुझे इससे कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन बहुत सारे हाँ और ना के बाद ये तय हुआ कि शादी अच्छे से होगी ताकि लोग कल को सवाल ना उठाएं।
मेरे और राहुल की ज़िंदगी में इतना बड़ा मोड़ अचानक ही आ गया। शादी की शॉपिंग करते वक्त मैं ख़ुश तो थी लेकिन रोई भी बहुत। क्योंकि मेरे पिता कहीं ना कहीं मन मारकर ये सब कर रहे थे। लेकिन मुझे पूरा भरोसा था कि वो ज़रूर ख़ुश होंगे। शादी हो गई और पांच महीने भी बीत गए। आज मेरे माता-पिता ख़ुश हैं और मुझे बहुत अच्छा ससुराल मिला है। हम एक ही शहर के हैं इसलिए मैं जब भी घर जाती हूं अपने माता-पिता के पास भी रहकर आती हूं।
शायद आपमें से ही कुछ लोग जब ये पढ़ रहे होंगे तो उन्हें लगेगा कि मैंने ग़लत किया कि अपने पिता को दुखी किया लेकिन मुझे अपने फ़ैसले पर भरोसा था कि ये अभी उन्हें चुभ रहा है पर बाद में यही फ़ैसला उन्हें अच्छा लगेगा। आख़िर मैं उन्हीं की बेटी हूं। मैंने एक ऐसे इंसान से शादी की है जो अच्छा कमाता है, मुझे और मेरे स्वच्छंद विचारों को समझता है, घर के काम में मेरा हाथ बंटाता है, मुझे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहता, मेरे लिए कभी-कभी शानदार खाना भी बनाता है, मेरे अच्छे-बुरे का ख्याल रखता है और सबसे बड़ी बात मेरे माता-पिता का बेटे की तरह ख्याल रखता है।
मेरी मां अब मुझे कहती है ‘तूने मुझे बेटा दे दिया’ ! मुझे अपने फ़ैसले पर कोई पछतावा नहीं है। आज मैं ख़ुश हूं और मेरे दोनों परिवार भी … #noregrets
मूल चित्र : Pixabay
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