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बरसो रे मेघा!

जब आज भी वर्षा ना हुई, तो दूधिया का बालमन भर आया, उसकी नज़रें अपने बापू को ही ढूंढ़ रहीं थीं कि उसने देखा की वो घर से दूर खेत की ओर रस्सी लेकर जा रहे हैं।

जब आज भी वर्षा ना हुई, तो दूधिया का बालमन भर आया, उसकी नज़रें अपने बापू को ही ढूंढ़ रहीं थीं कि उसने देखा की वो घर से दूर खेत की ओर रस्सी लेकर जा रहे हैं।

आज पूरे 20 दिन गुजर चुके थे। दूधिया लगातार टकटकी लगाए बस आसमान की ओर निहारती रहती थी। जैसे कोई काम ही ना था उसको। सुबह उठते ही सबसे पहले बापू के कंधों पर झूलने वाली दूधिया इन दिनों एकदम गुमसुम सी हो गई थी।

हो भी क्यों ना, आखिर उसके बापू भी तो उदास हैं, और दूधिया के बापू ही नहीं गांव के सभी लोग मौन और गमगीन हैं। क्यों? कारण एक ही है आज सावन का महीना लगे पूरे 15 दिन गुजर चुके थे और उनकी धरती अभी तक सूखी थी। मानसून के आने की कोई आहट तक नहीं दिखाई दे रही थी। भीषण गर्मी ने सबके प्राण सुखा दिए थे। बस बादल आते, थोड़ा गरजते और फिर वापस चले जाते।

सारे खेत बिना पानी के निष्प्राण और वीरान पड़े थे। गांव के लोगों के साथ पशुधन के भी प्राण हलक में आ चुके थे, और जब से दूधिया ने सुना था कि पड़ोस के घर के घीसा काका ने वर्षा की उम्मीदों में अपने प्राण गंवा दिए उसे बस अपने बापू की ही चिंता रहती।

दिन रात प्रभु से वो बालमन प्रार्थना करता, ” हे प्रभु वर्षा कर दो! मेरे बापू को मुझसे ना छीनना, उनका खेत फिर से हरा – भरा  कर दो।”

पर जब आज भी वर्षा ना हुई, तो दूधिया का बालमन भर आया। उसकी नज़रें अपने बापू को ही ढूंढ़ रहीं थीं कि अचानक उसने देखा की वो घर से दूर खेत की ओर रस्सी लेकर जा रहे हैं। घबराती हुई दूधिया बापू – बापू चिल्लाते हुए उनके पीछे भागी और कहने लगी, “बापू ऐसा मत करना हम खेत बेच देंगे, यहां से कहीं दूर जाकर रहेंगे।”

पर आज सुखिराम को अब कोई आस दिखाई नहीं दी, उसने पेड़ से रस्सी की पींग बांधी ही थी कि अचानक उसे याद आया पिछला सावन जब उसी पेड़ पर उसने दूधिया और उसकी मां के लिए झूला बांधा था। कितने खुशी और उमंगों से भरे थे उनके चेहरे उस साल और अब! सोचकर ही उसकी आंखों में पानी आ गया, दूधिया का रोता हुआ चेहरा देखकर सोचने लगा ये क्या करने जा रहा था मै, मेरे बाद इसका क्या होता। यूं कमजोर बनने से कुछ नहीं होगा।

“हे भोलेनाथ, माफ करना मुझसे गलती हो गई जो ये कदम उठाने जा रहा था, और कृपा करना हम सभी पर जो हम अपने खेतों और परिवारों को फिर से हंसता, खिलता और लहलहाता हुआ देख सकें”, कहते हुए उसने अपनी बच्ची को गले से लगाया और उसके लिए झूला बांधने लगा।

“चल बिटिया तेरे लिए झूला बांधने आया था, रोती क्यों है? तेरा बापू है ना अभी, तू ना डर भोलेनाथ कृपा जरूर करेंगे!”

कहते हुए उसने दूधिया को गले से लगा लिया। दोनों की आंखों से अश्रु नीर बह निकले और साथ ही साथ उस सूखी निष्प्राण धरती पर वर्षा नीर की बूंदे आ गिरी। देखते ही देखते सावन अपनी पूरी खुमारी पे था। गांव के सभी लोग खुशी से नाच रहे थे, बच्चे अपनी कागज की नावे लेकर तैराने लगे, और गांव की सभी स्त्रियां सतरंगी लहरियों के आभूषण पहन कर श्रावण गीत गाने लगी, और उधर दूधिया अपने बापू के डाले हुए झूले पर ऊंची – ऊंची पींगे लेने लगी। आखिर भोलेनाथ की कृपा जो ही चुकी थी।

सही तो है, ये वर्षा का जल ना हो तो ये प्यासी धरती बंजर होकर सूख जाती है। इंसान, पशु – पक्षी, वृक्ष सभी की खुशियों का स्त्रोत है ये जल। अतः इसे बचाएं, और आने वाले कल के लिए संचित करें, ना कि उसे यूं ही व्यर्थ बह जाने दें। क्यूंकि जल है तो कल है।

मूल चित्र : Pixabay 

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