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बच्चों में हिंसा और नकारात्मक मानसिकता के लिए ज़िम्मेदार कौन?

बच्चों में हिंसा व नकारात्मक सोच का क्या कारण है? यदि मेरे बच्चे गलत संगति में पड़ गए तो? यदि मेरे बच्चों के साथ कुछ गलत हुआ तो?

बच्चों में हिंसा व नकारात्मक सोच का क्या कारण है? यदि मेरे बच्चे गलत संगति में पड़ गए तो? यदि मेरे बच्चों के साथ कुछ गलत हुआ तो?

कई दिनों से ध्यान ऐसी खबरों पर जा रहा था जिन्होंने एक माँ होने के नाते मुझे परेशान कर दिया। बच्चों की अपराधिक गतिविधियों की खबरें काफी विचलित करने वाली हैं। मैं कुछ घटनाओं का यहाँ पर ज़िक्र करना चाहूँगी।

एक 8 साल के बच्चे ने अपने पड़ोस में रहने वाले एक डेढ़ साल के बच्चे को छत से उठा कर मार दिया। कारण था, उस बच्चे की बड़ी बहन ने उसके छोटे भाई को धक्का देकर गिराया था। इसके बाद, एक खबर यह भी सुनने में आई, जिसमें एक १२वीं के छात्र ने स्कूल के प्रधानाचार्य पर गोली चला दी। वजह थी प्रधानाचार्य ने उस छात्र को स्कूल से निकाल दिया। रियान इंटरनेशनल स्कूल, गुरूग्राम के ८ वर्ष के बच्चे की निर्मम हत्या, जिसकी अंतिम जाँच में उसी स्कूल के एक बच्चे को अपराधी पाया गया, की खबर सोच में डाल देती है। ऐसी बहुत सी दर्दनाक घटनाएं अक्सर अखबारों व न्यूज़ चैनलों पर सुर्खियों में होती हैं।

बच्चों में हिंसा व नकारात्मक सोच का कारण

आजकल बच्चों में हिंसा व नकारात्मक सोच का क्या कारण है? यदि मेरे बच्चे गलत संगति में पड़ गए तो? यदि मेरे बच्चों के साथ कुछ गलत हुआ तो?

इसका जवाब ढूंढने बैठें तो आसपास ही नज़र आयेगा। एकल परिवार, आधुनिकता की चकाचौंध, दौड़ती-भागती ज़िंदगी, सोशल मीडिया, स्कूल की किताबों में नैतिक शिक्षा का अभाव! यहां तक कि कई जगह हम माता-पिता का काम-काजी होने के कारण बच्चों पर ठीक से ध्यान न देना भी एक वजह है।

उद्देश्य अभिभावकों की परवरिश पर ऊँगली उठाना नहीं

शायद मेरा यह विचार बहुतों को खटके और इससे वे सहमत न हों, पर मेरा उद्देश्य अभिभावकों की परवरिश पर ऊँगली उठाना नहीं है। परंतु, यह तो आप मानते हैं कि बच्चों के लिए सबसे पहला शिक्षा का केंद्र या स्कूल उनका घर है। बच्चे जो भी देखते हैं वही सीखते हैं।

चाहे जितनी भी कोशिश करें उन्हें ज्ञान रटाने की, पर जो उन्हें सिखाया जाए, उससे कहीं अधिक वह देखी हुई बातों से सीखते हैं। बच्चों में अच्छे संस्कार डालना, उन्हें एक अच्छा नागरिक या एक अच्छा इंसान बनाना हम बड़ों का ही कर्तव्य है। इसमें परिवार, रिश्तेदार व आस-पड़ोस सभी का योगदान होता है।

 बच्चे और कच्ची मिट्टी

बचपन एक ऐसी अवस्था है जो बिल्कुल कच्ची मिट्टी की तरह होता है। बच्चे जिस सांचे में ढाले जाएँ, ढल जाते हैं। एक बार यदि बच्चे की नींव पक्की बन जाए तो फिर उसमें अच्छे बुरे का अंतर समझने की परिपक्वता आ चुकी होती है। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि घर पर ही बच्चों में अच्छे संस्कार व अच्छी आदतें डाली जाएं। जितना हो सके बच्चों में हिंसा व नकारात्मकता को पनपने न दें।

इसके लिए बहुत ज़रूरी है परिवार में बड़े अपना आचरण व व्यवहार इस तरह का रखें कि उसका बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े। कई बार घर में माहौल तो अच्छा होता है पर, बाहर का माहौल कुछ ऐसा होता है जिसका उन पर गलत प्रभाव पड़ जाता है। बस सही समय पर हम बड़े उन्हें सही राह दिखाएं, तो हालात काफी कुछ ठीक हो सकते हैं।

मेरा मानना है कि बच्चों में गुस्सा, द्वेष, बदले की भावना, जाति, रंग रूप के आधार पर भेदभाव, ज़्यादातर यही कारण है उनकी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के। किन्तु ऐसी विचारधारा को वे अपनाते कहाँ से हैं?
जैसा कि मैंने पहले भी कहा, सोशल मीडिया, आसपास का माहौल और आज की व्यस्त जीवन शैली।

बच्चों के प्रति लापरवाही ना करें

आज की जिंदगी में एक पति और पत्नी दोनों घर गृहस्थी चलाने के लिए काम करते हैं, जिसकी वजह से उनका ज़्यादातर समय बाहर ही बीतता है और वह बच्चों पर कम ध्यान दे पाते हैं। दिन-भर की भागदौड़ में हम बच्चों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।

एकल परिवार में होने के कारण बच्चे अपने दादा-दादी से अलग रहते हैं। ऐसे समय में माता-पिता को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वे व्यस्त होने के बावजूद अपने बच्चों की रोजमर्रा की क्रियाओं पर नजर रखें। अगर वे गलती कर रहे हों तो उन्हें प्यार से समझाएं और उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखें।

हम अपने बच्चों के व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार

यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ हद तक हम भी अपने बच्चों के इस व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार हैं। बच्चे जब अपने बड़ों को या अपने परिवार के सदस्यों को या पड़ोस में रहने वालों को आपस में लड़ता देखते हैं, भेदभाव करता देखते हैं, गलत भाषा का प्रयोग करता देखते हैं तो ज़ाहिर है, जो देखेंगे वही सीखेंगे। वे यह समझ लेते हैं कि जीवन जीने का यही तरीका है। वे बड़ा-छोटा, ऊंच-नीच जैसे भेद-भाव सीखते हैं।

‘बदला’ जैसे शब्द वे अपने घर पर ही नहीं, आस-पड़ोस में भी सुनते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कुछ बच्चे आपस में लड़ बैठें, तो जो बच्चा रोता हुआ आ जाए, परिवार के सदस्य उसे कमज़ोर ठहराते हैं और उसके मन में बदले की भावना पैदा करते हैं। वे छोटे बच्चे हैं, बाल मन में बदले की भावना डालना कहाँ तक उचित है? बेहतर होगा कि बच्चों को आपस में बिठा कर उन्हें प्यार से समझाएँ।

बच्चे हमारा भविष्य हैं

बच्चे हमारा भविष्य हैं। उन पर ही हमारे देश का विकास टिका है। बच्चों को प्यार से समझाएँ, न कि डर व दबाव से, क्योंकि अगर उन्हें बचपन से ही डर दिखाकर काम करवाया गया, तो वे भविष्य में अपराध की श्रेणी में जाकर समाज के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। यदि बच्चों की नींव कमज़ोर रखी गई, तो कल वह बेहतर इंसान कैसे बनेंगे? ऐसे में देश में अपराधिक घटनाएं होना लाज़मी है।

क्या माता-पिता के तौर पर सबसे पहली जिम्मेदारी हमारी नहीं बनती कि हम अपने बच्चों की एक अच्छी और मजबूत नींव बनायें? और भी कई ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं जिन्हें हम अपनाकर बच्चों को अच्छा व बेहतर जीवन देने के साथ-साथ उन्हें एक अच्छा इंसान भी बना सकते हैं।

आज की जिंदगी में एकल परिवार होना सामान्य है। काम करने की वजह से हम अलग-अलग शहरों में रहते हैं। यदि आप कामकाजी हैं तो कोशिश करें, घर के बड़ों को अपने साथ रखने की और अगर वह संभव न हो तो छुट्टियों में उनके पास जाएं। कभी उन्हें अपने पास बुलाएं ताकि बच्चे उनके साथ अच्छा समय व्यतीत कर सके। बड़े-बुज़ुर्गों से अच्छा और कौन होगा हमारे बच्चों को संस्कार देने के लिए?

इसके साथ ही बच्चों की रोज़ की गतिविधियों पर पूरा ध्यान दें। वह किस तरह के बच्चों के साथ मेल-मिलाप रखते हैं, सोशल मीडिया पर क्या करते हैं, उनकी स्कूल की पढ़ाई के बारे में पूरी जानकारी रखें। बच्चों का टी.वी. व मोबाइल गेम्स में ध्यान कम से कम हो, इसके लिए उन्हें नृत्य, संगीत, चित्रकला व खेल जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करें।

बच्चों में हिंसा व नकारात्मकता ना आये

हो सके तो बच्चों के सामने कोई बहस या ऐसी कोई बात न करें जिससे उनमें कोई नकारात्मकता आए।
बड़ों का आदर व छोटों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना सिखायें। उन्हें आसपास का माहौल भी अच्छा दें। उनके मन में बदले की भावना न पनपने दें, बल्कि उन्हें आपस में मिलकर प्यार से रहना सिखाएं। अगर बच्चे आपस में झगड़ते हैं तो सुलह करवायें। उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें, उनके साथ खेलें, उन्हें अच्छी, ज्ञानवर्धक व शिक्षाप्रद किताबें पढ़ने को दें।

समाज के विकास का अर्थ है एक राष्ट्र का विकास। ऐसा राष्ट्र जो प्रेम और सदभावना का प्रतीक हो, जहाँ द्वेष, हिंसा, जातिगत भेदभाव, क्रोध, अराजकता जैसी सामाजिक बुराइयों के लिए कोई स्थान न हो। बच्चे हमारा आने वाला कल हैं। उनके उज्जवल भविष्य के लिए बेहतर नींव तैयार करने से हम एक अच्छे समाज के विकास में योगदान दे सकते हैं।

आशा करतीं हूँ, मेरा लेख आपको उपयोगी लगा होगा। आपकी राय व टिप्पणी का इंतजार रहेगा। पढ़ने के लिए धन्यवाद।

मूल चित्र : Unsplash 

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Sonia Madaan

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