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तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे…सच! कितना सुकून होता है इन में!

तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे..सच! मेरी कमियों को मैं और समझ पाती हूँ, हर उस ख़ुद से तन्हा मुलाकात में कुछ नया सीख जाती हूँ - श्वेता व्यास 

तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे..सच! मेरी कमियों को मैं और समझ पाती हूँ, हर उस ख़ुद से तन्हा मुलाकात में कुछ नया सीख जाती हूँ – श्वेता व्यास 

तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे…सच!
कितना सुकून होता है इनमें
रेगिस्तान में जैसे गुलमोहर उग आए
तपती ज़मीन पर बारिश की बूंद गिर जाए
अश्कों से भरी आँखें हों और होंठ मुस्कुरा जाएं
उदास दिल में कोई ठिठोली कर जाए

तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे…सच!
कैसा लगता है, आंसू मन का बोझ हल्का कर दे
दूर तलक नीला आसमां गुफ़्तगू मेरी ख़ुद में समेट ले
वो कानों से गुज़रती मद्धम-मद्धम हवा
सब कुछ भूल, नई राह का इशारा कर दे

तन्हाईयां अच्छी लगती हैं मुझे…सच!
रू-बरू मुझे इस ज़माने की सच्चाई से करवा जाती हैं
परत दर परत हर घाव तो खोद जाती हैं
कभी दुखों के समंदर में डुबकी भी लगवा जाती हैं
लेकिन फिर ज़िन्दगी का कोई नया सबक सिखा जाती हैं

तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे..सच!
मेरी कमियों को मैं और समझ पाती हूँ
हर उस ख़ुद से तन्हा मुलाकात में कुछ नया सीख जाती हूँ
ख़ुद को जवाब देने और समझाने का मज़ा ही कुछ और है
बुरा नहीं है ये तल्ख़, उन सब रिश्तों में इसे सबसे मीठा पाती हूँ।

मूलचित्र : Pixabay 

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Shweta Vyas

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