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हे भगवान! मैं तो अभी भी जिंदा हूँ!

हे भगवान! मेरा ऑपरेशन हो रहा है और ये डॉक्टर क्या कर रहे हैं। इन्हें अपनी छुट्टियों का प्लान बनाने के लिए यही जगह मिली है क्या? 

हे भगवान! मेरा ऑपरेशन हो रहा है और ये डॉक्टर क्या कर रहे हैं। इन्हें अपनी छुट्टियों का प्लान बनाने के लिए यही जगह मिली है क्या? 

‘रेखा इस बार छुट्टियों में कहां जा रही हो?’

‘अरे डाॅक्टर मीना, इस बार तो गोवा जाने की सोच रही थी। सोचा नया साल भी मना लूंगी, दो होटल बुक करने की कोशिश की, लेकिन वो दोनों फुल थे। बुकिंग मिल ही नहीं रही…अच्छा वो सीजर देना…’

‘हाँ, ये लीजिये।’ 

‘हम्मम! एक-दो महीने पहले बुक की होती तो ऐसी प्राब्लम नहीं आती। खैर, दूसरे जगह चली जाओ।’ 

ऑपरेशन थियेटर की बेड पर लेटे, मैं डाॅक्टरों की बात सुन रही थी। मेरी डिलीवरी हो रही थी। इंजेक्शन लगाकर मेरे शरीर का निचला हिस्सा सुन्न कर दिया गया था और मैं सब को देख रही थी। सबकी बातें भी सुन रही थी। डॉक्टर रेखा को सब सलाह दे रही थी कि ऊटी चली जाओ या कोडाईकनाल चली जाओ। एक मन मेरा भी किया कि मैं भी उन्हें बोलूं कि आप केरल घूम आइए क्या प्राकृतिक सुंदरता है उस जगह। ऐसा लगता है जैसे सपनों के शहर में आ गए हो, चारों तरफ हरियाली, पानी की बूंदों से पेड़-पौधे नई नवेली दुल्हन से खिले हुए लगते हैं। चिड़ियों का चहचहाना किसी राग मल्हार से कम नहीं लगता। सुबह-सुबह नदियों-झरनों का मीठा शोर मन में कौतूहल पैदा कर देता है।

ये सब सोच ही रही थी तभी अचानक दिल जोर से धड़का।

हे भगवान! मेरा ऑपरेशन हो रहा है और ये डॉक्टर क्या कर रहे हैं।

इन्हें अपनी छुट्टियों का प्लान बनाने के लिए यही जगह मिली है क्या? अगर बातचीत में कही का औज़ार कहीं और लगा दे? काटना कहीं और हो और कहीं कोई ग़लत जगह कट जाए? अगर मैं मर गई तो मेरे बच्चे का क्या होगा? तो क्या ये दूसरी शादी कर लेंगे…

तभी मुझे पतिदेव की एक बात याद आई। जब मैंने उनसे एक बार पूछा था कि अगर मैं मर गयी तो क्या आप दूसरी शादी कर लेंगे? तो इस पर पतिदेव ने कहा भी था कि परिस्थितियों के अनुसार कर भी सकता हूँ। फिर तो उनकी मंशा पूर्ण हो जाएगी। ले आएँगे मेरी सौतन। लेकिन मेरी बच्चे का क्या होगा? नहीं नहीं…

ये सोच कर रूह ही कांप गई मेरी। एक बार सोचा, रूको मैं इन्हें कहती हूँ कि आप लोग अभी ऑपरेशन पर ध्यान दें। लेकिन शरीर इतना भारी लगा, चाह कर भी शरीर हिला नहीं पा रही थी और ना कुछ बोल ही पा रही थी। सारा शरीर सुन्न जो पड़ा था। बस शरीर पर हो रही कुछ हरकत समझ आ रही थी। डॉक्टरों की हँसी-ठिठोली सुनाई दे रही थी।

मैंने सोचा ऑपरेशन ऐसे होता है क्या?

कल्पना तो कुछ और ही बोल रही थी। उसकी बातें सुनकर तो मुझे घबराहट हो गई थी लेकिन मुझे तो ऐसा कुछ फील नहीं हो रहा। कल्पना ने तो अपनी डिलीवरी का जो वर्णन किया था वो सुनकर तो मेरी रूह काँप गई थी। तभी सोचा था कि कभी ऑपरेशन नहीं कवाऊँगी, नार्मल डिलीवरी को ही प्राथमिकता दूंगी। लेकिन बीमारी जो ना करा दे।

खैर, जिस चीज पर अपना बस ही ना चले उसके बारे में सोचकर क्या फायदा? तभी बच्चे का मधुर क्रंदन सुनाई दिया। डाॅक्टर ने मुझे बच्ची दिखाते हुए कहा, ‘आशा, तुम्हें बहुत ही प्यारी बच्ची हुई है। ये सुनते ही मेरी आँखों में खुशी के आँसू भर गये। तभी ध्यान आया कि मेरा ऑपरेशन हो भी गया और मुझे तो कुछ पता भी नहीं चला।

मैं जिंदा हूँ इसकी खुशी मुझे बहुत हुई। आखिर सौतन को नहीं आने दिया। देह तो सुन्न था लेकिन दिमाग घोड़े की भांति इस गली से उस गली छलांगे मार रहा था। कुछ देर बाद मुझे दूसरे कमरे में शिफ्ट कर दिया गया।

मन से बरबस ही वाह निकली और सोचा ऐसी डिलीवरी सबकी होनी चाहिए, जहाँ डर कम और हँसी ज़्यादा मिले।

मूलचित्र : Pixabay 

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Pragati Tripathi

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