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बिन ब्याही माँ! अब मैं सोच रहा था, आखिर बच्ची किसकी है?

अब मेरा मन, पहले से ज़्यादा उसके बारे में सोचने लगा। क्या वो बिन ब्याही माँ है? इतना अच्छा मौका उसके बारे में जानने का, हाथ से चला गया।

अब मेरा मन, पहले से ज़्यादा उसके बारे में सोचने लगा। क्या वो बिन ब्याही माँ है? इतना अच्छा मौका उसके बारे में जानने का, हाथ से चला गया।

मेरे ख़्वाबों में हमेशा एक लड़की आती थी, पीला सूट पहने, लंबी, छहररा बदन, लेकिन कभी उसका चेहरा नहीं देख पाया, कमबख़्त नींद ही खुल जाती थी।

पेशे से मै बच्चों का डॉक्टर था, अपना खुद का क्लीनिक था। आज मेरे क्लीनिक वो आई थी, पीला फ्रॉक सूट पहने, हाथो में चूड़ी, आँखो में काजल, कानों में बड़े झुमके पहने थे। बहुत ही सुन्दर लग रही थी। बिल्कुल मेरे ख़्वाबों की रानी लग रही थी। उसके गोद में लगभग एक साल की बच्ची को देखकर मेरी तन्द्रा टूटती है।

‘डॉक्टर, मेरी बेटी को एक हफ्ते से फीवर है।’

मैंने उसकी बच्ची का नाम पूछा तो उसने रूही बताया। फिर मैंने चेक किया, कुछ दवाएं लिखीं और कुछ टेस्ट कराकर रिपोर्ट पाँच दिन में दिखाने को कहा। वो मुझे धन्यवाद कहकर चली गई। उसके जाने के बाद बार-बार उसी का ख्याल मन में आ रहा था। पर खुद को समझाया अरे वो तो एक बच्ची की माँ है।

आज रात फिर वही ख्वाब आया, फिर वही लड़की दिखी, पर आज मैंने चेहरा देखा। अरे! ये तो! आज जो आई थी, वही क्लीनिक वाली लड़की है। मेरी नींद टूट जाती है। करीब दो बज रहे थे। हे भगवान! मेरे ख्वाब में वो लड़की क्यों दिख रही है। वो तो एक बच्ची की माँ है।

मैं उसके बारे में कैसे सोच सकता हूँ, उसकी तो एक साल की बेटी है, तो पति भी होगा। लेकिन मैंने देखा था, न सिंदूर था माँग में, न ही मंगलसुत्र पहना था। मैं क्यों सोच रहा हूँ उसके बारे में? फिर से मैं चादर तान के सो जाता हूँ।

शाम के सात बज रहे थे, मौसम बहुत खराब था। लग रहा था बारिश होगी, मैं क्लीनिक बन्द करने वाला था। अचानक वो आई, रूही की रिपोर्ट दिखाने। सच बताऊँ तो मैंने उसे देखा तो रिपोर्ट ही देखना भूल गया। गोरा रंग, सुर्ख गुलाबी सूट, माथे पर बिंदी, बहुत ही खुबसुरत लग रही थी। फिर उसने मुझसे कहा, ‘ज़रा रिपोर्ट देख लीजिए, मुझे घर जाना है, मौसम भी खराब हो रहा है।’

मैंने रिपोर्ट देखी तो सब नॉर्मल था। मैंने कहा, ‘रिपोर्ट ठीक है बस दो दिन बाद, दवा बंद कर देना।’

तेज़ बारिश शुरू हो गई थी। मैं क्लीनिक बन्द कर बाहर निकला तो वो बाहर खड़ी थी।

‘आप गई नहीं अभी?’

‘ऑटो नहीं मिल रहा।’

‘बारिश इतनी तेज़ है और रात भी हो गई है, ऑटो जल्दी मिलेगा नहीं। चलिए, मैं छोड़ देता हूँ।’ थोड़ा संकुचाई, फिर आकर कार में बैठ गई।

थोड़ी देर हम दोनों चुप रहे। सोचा यही मौका है, उसके बारे में जानने का। फिर मैंने ही बात करनी शुरू की।

‘आपका नाम?’

‘मुग्धा।’

‘नाइस नेम। मेरा नाम…।’

‘आपका नाम प्रफुल्ल है, पर्चे पर देखा था। बताने की ज़रुरत नहीं।’

मुझे खुद पर हँसी आ रही थी। सोचा अब शादी के बारे में पूछ लूँ।

‘आपको देख के लगता नहीं कि आप की शादी हुई है और एक बच्ची भी है।’

वो मुस्कराई और बोली, ‘मेरी शादी नहीं हुई है।’

तो मैंने भी तपाक से पूछ लिया, ‘तो बच्ची?’

वो कुछ बताती उससे पहले उसका घर आ गया। वो धन्यवाद बोलकर चली गई ।

अब मेरा मन, पहले से ज़्यादा उसके बारे में सोचने लगा। क्या वो बिन ब्याही माँ है? अब बार-बार खुद को कोस रहा था। इतना अच्छा मौका था उसके बारे में जानने का वो भी हाथ से चला गया। अब यही सोच रहा था कि आखिर बच्ची किसकी थी। धीरे-धीरे एक हफ्ता बीत जाता है।

एक दिन मैं शाम को उसकी ऑफिस की तरफ से जा रहा था वो ऑटो का इंतज़ार कर रही थी। मैंने कार रोक दी और बोल दिया चलिए, ‘मैं आप को छोड़ देता हूँ।’

मैंने कॉफी पीने का आग्रह किया। साथ में हम दोनों कॉफी शॉप गए। अब बात कैसे शुरू करूँ, तो पहले मैंने रूही के बारे में पूछा, ‘रूही कैसी है?’

‘अब ठीक है।’

‘रूही आपकी बेटी है?’

वह कुछ देर शाँत रही। मुझे डर लग रहा था, कहीं गलत सवाल तो नहीं पूछ लिया। फिर उसने बताना शुरु किया।

‘करीब एक साल पहले मेरी बड़ी बहन, मानवी दीदी, की डिलिवरी थी। उस दिन वो जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली थी। डॉक्टर ने बहुत कोशिश की लेकिन सिर्फ रूही को बचा सके। दीदी और एक बच्चे को नहीं बचा सके। दूसरा बच्चा लड़का था। दीदी के ससुराल वाले रूही को अपनाने को तैयार नहीं हुए। कहने लगे कि अपशगुनी है, पैदा होते ही माँ और भाई को खा गई।’

‘मैं और मेरी माँ ने रूही की ज़िम्मेदारी ली। माँ चाह रही है कि रूही की ज़िम्मेदारी उन पर छोड़ मै शादी कर लूँ। पर मैं चाह रही थी रूही को अपना नाम दूँ। माँ की उमर हो गई है, इसलिए मैं रूही की ज़िम्मेदारी उन पर नहीं छोड़ सकती। मैंने फैसला किया है कि मैं शादी उसी लड़के से करूंगी जो मेरी रूही को अपनाएगा, वर्ना बिन ब्याह के ही मैं उसकी माँ बनकर रहूँगी। पर अभी तक माँ ने बहुत रिश्ते देखे, पर बात रूही पर आकर रूक जाती हैं।’

अभी तक तो मुझे उसे देखकर प्रेम हुआ था। आज उसकेे विचारों सेे मेेेरा प्रेेम दोगुना हो गया। मैं उसेे घर तक छोड़, खुद घर आ गया। आज मैं बहुत खुश था, मैंने सोच लिया था कि मैं उसे बिन ब्याही माँ बनकर नहीं रहनेे दूँगा। मेेेरी खुुशी मेेेरी माँ सेे छुपी नहीं।

‘बेटा आज तू बहुत खुश लग रहा है?’

मैने माँ को पूरी बात बताई और कहा मैं मुग्धा से शादी करना चाहता हूँ ।

माँ मेरी समझदार और खुले विचारों वाली हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर तू मुग्धा से शादी कर रूही को पिता का नाम देना चाहता है, तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं। मुझे अपने बेटे पर पूरा विश्वास है कि वो एक अच्छा पिता साबित होगा।’

मैं और माँ एक दिन मुग्धा के घर गए। शाम का समय था, मुग्धा अभी ऑफिस से आई नहीं थी।

माँ ने मुग्धा की माँ से कहा, ‘मेरा बेटा आपकी बेटी को पसन्द करता है और शादी करना चाहता है। अगर आपको ये रिश्ता मंजूर हो तो बात आगे बढ़ाई जाये।’

‘पर रूही?’

मुग्धा की माँ के गोद से रूही को लेकर माँ ने कहा, ‘आप रूही की चिंता मत करिये। आज से ये मेरी पोती है।’

मुग्धा के लिए उसकी माँ खुश थी कि इतना अच्छा रिश्ता खुद चलकर आया है।

‘एक बार मुग्धा घर आ जाए और वो हाँ कह दे तो बात पक्की है।’

तब तक मुग्धा भी घर आ गई। प्रफुल्ल को ऐसे घर देखकर वो हैरान थी।

‘माँ, देखो आपकी बहु आ गई।’

‘ब्याह करोगी मेरे बेटे से?’ आते ही माँ ने सवाल किया।

मुग्धा कुछ सोच में पड़ गई।

‘देखो बेटा, अगर तुम रूही को लेकर सोच रही हो तो मत परेशान हो। आज से रूही की ज़िम्मेदारी हमारी है। ये पहली शादी होगी जहाँ बहू के साथ पोती भी घर आयेगी।’

उसने माँ के पैर छुए तो माँ ने उसे गले लगा लिया।

‘अब जल्दी से हमारे घर बहू बनकर आ जाओ।’

मूलचित्र : Pixabay

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