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वाराणसी में दो लड़कियों ने अपने में एक क्रन्तिकारी कदम उठाते हुए एक दुसरे से की शादी और बता दिया कि प्यार का कोई जेंडर नहीं होता।
किसी ने सही कहा है कि ‘प्यार तो हमेशा से ही सतरंगी था, ये तो दुनिया है जिसने इसकी धारा को सीमित करना चाहा’। समाज की इसी एक सोच की धारा को तोड़ता हुआ एक वीडियो और फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में दो लड़कियों ने जीन्स, टी-शर्ट और लाल चुनरी ओढ़ कर वाराणसी के एक मंदिर में शादी कर ली।
सूत्रों के मुताबिक यह शादी जिले के रोहनियां इलाके के धागड़बीर हनुमान मंदिर काम्प्लेक्स में स्तिथ शिव मंदिर में हुई। जब दोनों लड़कियाँ मंदिर में शादी करने गईं तो पहले पुजारी ने शादी करवाने से मना कर दिया, परंतु जब लड़कियाँ अपनी बात पर अड़ी रहीं तो आख़िर में पुजारी को मानना ही पड़ा। रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि लड़कियों ने विधि अनुसार, एक दूसरे को फूलमाला पहना कर, मंगलसूत्र बाँध कर, और सिंदूर लगाकर शादी की रस्म पूरी की। हालाँकि, इस पुरे मामले पर स्थानीय लोगों में बहुत आक्रोश था, जिसकी वजह से शादी के तुरंत बाद लड़कियों को वहां से भागना पड़ा।
यह सवाल बहुत लाज़मी है कि ये शादी एक क्रन्तिकारी कदम क्यों हैं? इसका जवाब हमारे समाज का समलैंगिकता के प्रति जो नज़रिया है, उसमें छुपा है।
सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने धरा 377, जिसकी वजह से देश में समलैंगिक रिश्ते रखना एक जुर्म था, को ख़ारिज किया और इसी के साथ एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को इस देश में पहचान दिलाई। परंतु अभी भी हमारे समाज में एलजीबीटीक्यू समुदाय को ‘नेचुरल’ नहीं माना जाता। जिस समाज में क़ानूनी तौर पर एक समान होने का हक़ होने के बाद भी लेस्बियन और गे कपल्स को स्वीकृति के लिए संघर्ष करना पड़ता है, उस समाज की परवाह ना करते हुए एक लेस्बियन कपल का शादी कर लेना एक बहुत बड़ा क्रन्तिकारी कदम है। ये मोहब्बत की जीत है।
हमारे समाज को समलैंगिकता को एक मानसिक बीमारी, एक अवस्था या फेज़, वेस्टर्न ख्याल, धर्म के विरुद्ध, प्रकृति के उसूलों के खिलाफ, विकृति या अननेचुरल, इत्यादि जैसी बिना सिर पैर की बातों से ऊपर उठ कर, एलजीबीटीक्यू समुदाय को समाज मे समान दर्जा देना चाहिए। उन्हें वह स्वीकृति देनी चाहिए जिसके वे हकदार हैं।
हमारे रिग वेद में लिखा है –
‘विकृतिः एवम् प्रकृतिः’
WHAT SEEMS UN-NATURAL IS ALSO NATURAL अथवा हमारे समाज को यह समझना ज़रूरी है कि जो उनके लिए विकृति है वही किसी की प्रकृति है।
मूलचित्र : Pixabay
I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life.
शादी होने के बाद लड़कियों की ससुराल में भी होनी चाहिए इज़्ज़त
मशहूर अदाकारा आशा पारेख सिद्ध करती हैं कि एक महिला के जीवन का अंतिम लक्ष्य शादी करना नहीं है
माननीय खट्टर साहब, कश्मीरी लड़कियां को ना तो आपकी ज़रुरत है ना ही दूसरे पुरुषों की
मेरे लिए शादी सिर्फ एक रिवाज़ या बंधन नहीं…
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