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तुम लौट के आना-बस एक इल्तिजा है मेरी

अभी तो तुमको युद्ध कर और जग जीतना है-बस एक इल्तिजा है मेरी, सरहद के उस पार की, थोड़ी मिट्टी लेते आना। 

अभी तो तुमको युद्ध कर और जग जीतना है-बस एक इल्तिजा है मेरी, सरहद के उस पार की, थोड़ी मिट्टी लेते आना। 

तुम्हें अपनी सरहद के उस पार देख के मन बौखलाया था, खून खौला था।
पर, तुम्हारे साहस को देख के मन मुस्काया भी था।
जाने कौन नगर से आए हो तुम,
कितना साहस भर लाए हो तुम।

किसी की चुड़ियों की खनक छोड़ चले गए हो,
आंगन में खिलखिलाती हंसी को सीने में दबाये चले गए हो।
एक माँ के लिए ,एक माँ को छोड़ चले गए हो ।
जाने कौन सा जुनून लिए,
इस घर के आंगन को सुना कर चले गए हो।

राह ताकती हैं निगाहें मेरी, तुम लौट के आना।
इस मिट्टी के तिलक से तुम्हारा अभिनंदन करना है।
तुम्हारे साहस को हर घर पहुँचाना है,
पिता के चेहरे से शिकन मिटानी हैं,
अभी तो तुमको युद्ध कर और जग जीतना है।

बस एक इल्तिजा है मेरी,
सरहद के उस पार की,
थोड़ी मिट्टी लेते आना,
नफ़रत से भरी उस मिट्टी में ,
मुझे थोड़ा प्यार मिलाना है।

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