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मैं एक गृहस्वामिनी हूँ – हाँ, मैं ही इस घर की बॉस हूँ

मैं इस घर की बॉस हूँ, मुझे सब देखना होता है। केवल बॉस ही नहीं, पियोन से क्लर्क तक मैं ही हूँ। सारे डिपार्टमेंट मुझे अकेले ही सम्भालने होते हैं। 

मैं इस घर की बॉस हूँ, मुझे सब देखना होता है। केवल बॉस ही नहीं, पियोन से क्लर्क तक मैं ही हूँ। सारे डिपार्टमेंट मुझे अकेले ही सम्भालने होते हैं। 

आज दोपहर को हीना के घर पर किट्टी पार्टी थी। फ़टाफ़ट सबका नाश्ता, लंच-बॉक्स तैयार किया। घर तो सुबह-सुबह इतना अस्त-व्यस्त होता है कि ठीक करने में दो घण्टे लग जाते है। काम वाली भी जल्दी झाड़ू-पोछा कर के चली गई। सासूजी का खाना-दवा करते बारह बज चुके थे और तैयार हो कर निकलने में आधा घंटा और लग गया। सासूजी को, घर सम्भलवा कर, पाँच बजे लौटने का वादा करके पार्टी में पहुँच गई।

मैं थोड़ा लेट थी। सब कहने लगीं, “इतनी देर क्यों कर दी?”

मैंने कहा, “बस कुछ नहीं, वही घर के काम, सारे निपटाने पड़ते हैं।”

कविता बोली, “सही है यार, इतने सारे काम और करने वाले अकेले हम ही ना। अरे पूछो मत, रोबोट की तरह बस एक के बाद एक अपने आप ही हाथ चलते रहते हैं। बस मशीन बन गई हैं हम सब।”

प्रेरणा ने कहा, “तुम लोगों को तो फिर भी टाइम मिलता है, सास थोड़ी सी मदद तो करती होगी। पर मुझे तो अकेले सब देखना होता है। रानी बनाने का वादा किया पर बाई बना दिया है।”

सब हाहाहा करके हँस पड़ीं। थोड़ी देर में हम अपनी परेशानी और काम का दबाव भूल कर पार्टी में मस्त हो गयीं।

पर एक बात मुझे खटक गई, क्या सचमुच हम बाई हैं? और इससे ज्यादा हमारा कोई वजूद नहीं है? सबका काम करो, लास्ट में कामवाली का टैग लगवा कर जियो?  खुद के लिए कोई वक़्त नहीं। हम सब कुछ ख़ुशी से करती हैं, कोई हम पर थोपता नहीं है, पर कोई हमें शाबाशी नहीं देता। और प्रशंसा तो छोड़िए, लोग हम गृहणियों को निठल्ला, और नॉन-प्रोडक्टिव भी समझते हैं। कोई कहता है कि मज़े हैं तुम्हारे तो। कोई कहता है कि अरे भाई घर में रह कर मज़े करती हो। अभी एक विज्ञापन में भी कहते हुए सुना कि क्या शान है तुम हाउसवाइफ की, यानि, सबसे अधिक समय और मज़े से कट रही है हमारी, कोई प्रेशर नहीं है हमें।

पति को भी लगता है, “सुबह चाय का कप हाथ में देखता हूँ और शाम को लौटा तो भी मैडम के हाथों में चाय का प्याला, मज़े है तुम्हारे तो।”

“पर क्या आपके मज़े नहीं हैं? आप तो बॉस हो। आपको क्या काम? बस साइन करो, मीटिंग करो, हो गया।” मैंने चुटकी ली। वो बोले, “आपको क्या पता मैडम! एक बॉस को कितना तनाव रहता है, साइन करने से पहले हज़ारों फॉर्मेलिटी, मीटिंग में प्रजेंटेशन, विचार-विमर्श और उसके बाद में अगला-पिछला सारा कुछ देखते हैं।” पति अपनी व्यथा कह रहे थे।

मैंने भी मौका गंवाया नहीं, “तो मैं भी तो इस घर की बॉस हूँ, मुझे भी सब देखना होता है। और, केवल बॉस ही नहीं, पियोन से क्लर्क, यानी स्केल 4 से 1st तक मैं ही हूँ। सारे डिपार्टमेंट मुझे अकेले ही सम्भालने होते हैं। और, आप कहते हो कि करती ही क्या हो तुम? अब देखो, कल ही ऐश्वर्या रॉय बच्चनजी ने हाउसवाइफ को CEO का दर्जा दिया और एक आप हो कि जिन्हें हमारा एफर्ट दिखता ही नहीं।”

पतिदेव मुस्कुराए और बोले, “ओह्हो स्वीटहार्ट! मैं तो मज़ाक करता हूँ तुमसे। तुमने ही तो पूरा घर सम्भाला हुआ है, आखिर तुम मेरे घर की बॉस जो हो। वैसे CEO साहिबा क्या मेरी एक कप कॉफ़ी की एप्लिकेशन मंजूर करेंगी आप?”

मैंने भी तपाक से कहा, “बिल्कुल! बस शर्त यह है कि कॉफ़ी के बर्तन आप साफ़ करेंगे।”

दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।

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