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प्रमुख दलों ने 2019 के चुनाव लिए अपना चुनावी घोषणा-पत्र जारी किया है। आइये देखें महिलाओं के प्रावधानों को लेकर विभिन्न पार्टियां अपने मेनिफेस्टो में क्या पेश करती हैं?
प्रमुख दलों ने 2019 के चुनाव लिए अपना चुनावी घोषणा-पत्र जारी किया है। आइये देखें महिलाओं के महत्वपूर्ण प्रावधानों को लेकर विभिन्न पार्टियां अपने मेनिफेस्टो में क्या पेश करती हैं?
अनुवाद : कनुप्रिया
भारतीय महिलाओं के साथ केवल वादे किये जाते हैं। लेकिन, क्या हम 2019 के चुनाव में, महिलाओं के महत्वपूर्ण प्रावधानों के समावेश बिना चुपचाप बैठने को तैयार हैं? खास कर के तब, जब इसमें किसी अनुवर्ती की कोई गारंटी नहीं है? आइए, एक नज़र डालते हैं कि महिलाओं के लिए प्रावधानों को लेकर विभिन्न पार्टियां अपने मेनिफेस्टो में क्या पेश करती हैं।
17 वीं लोकसभा के संविधान का चुनावी बुखार हर दिन बढ़ रहा है। उम्मीदवारों के बारे में घोषणाओं और नामांकन पत्र दाखिल करने के साथ-साथ, विभिन्न राजनीतिक दल अगले पांच वर्षों के शासन के लिए, अपने दृष्टिकोण का विवरण भी कर रहे हैं। पार्टियों के घोषणा-पत्र दस्तावेजों में रोजगार, अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, वंचितों के लिए प्रावधान, आदि क्षेत्रों में चुनावी वादे किए गए हैं।
जहाँ बसपा (बहुजन समाज पार्टी) जैसी राजनीतिक पार्टी ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि वह घोषणा-पत्र में विश्वास नहीं रखती है, भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) जैसी अन्य पार्टियों को अभी भी अपने रोड-मैप को साझा करना है। यदि पार्टी संसद के 17वें कार्यकाल के लिए सफलतापूर्वक निर्वाचित हुई तो, ये पार्टी के प्रदर्शन का बेंच-मार्क रहेगा।
जब तक पार्टियां और चुनावी वादों की घोषणा करती हैं, तब तक हम एक नज़र डालते हैं, 2019 के उन चुनावी घोषणा-पत्रों पर, जिनका अनावरण हो चुका है और जिसमें महिलाओं के लिए कुछ प्रावधानों पर नज़र डाली गई है।
2019 के चुनावों में महिलाओं के प्रावधानों पर ध्यान देने वाली कौन सी महत्वपूर्ण बातें हैं?
महिलाएं आज भारतीय आबादी का आधा हिस्सा हैं। 2019 के चुनावों में यह अपेक्षा की जा रही है कि, अपने मतदान और चुनावी शक्ति का उपयोग करके, महिला मतदाता पुरुष मतदाताओं से आगे निकल जाएँगी। महिला मतदाताओं की गणना में वृद्धि के साथ, राजनीतिक दलों के फोकस में भी बदलाव आया है क्योंकि महिला मतदाताओं को अब चुनावों में गंभीर हितधारक माना जा रहा है।
पिछले साल की तरह इस साल भी चुनावों में महिला सशक्तीकरण एक प्रमुख चुनावी वादा है। राजनीतिक दलों ने लैंगिक न्याय और महिला सशक्तीकरण के सन्दर्भ में बहुत सारी योजनाएं बनायीं हैं और चुनावी वादे किये हैं।
महिलाओं पर केंद्रित ऐसे कुछ प्रावधानों में से कुछ प्रमुख प्रावधानों का अवलोकन यहां किया गया है –
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)
2अप्रैल, 2019 को कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया। यह ५५ पन्नों का दस्तावेज़ है जिसको नाम दिया गया है ‘हम निभाएंगे’। यह भारतीय नागरिकों को काम, दाम, शान, सुशासन, स्वाभिमान और सम्मान (वर्क, वेल्थ, पावर, गुड गवर्नेंस, सेल्फ-एस्टीम, डेली नीड्स), दिलाने का वादा करता है।
इस घोषणा-पत्र का एक अनुभाग है जिसका नाम है ‘स्वाभिमान-सेल्फ एस्टीम फॉर द डिप्राइव्ड’ (स्वाभिमान – वंचितों के लिए आत्मसम्मान)। यह खंड, 13 प्रावधानों के ज़रिये, पार्टी की योजनाओं और महिला सशक्तीकरण एवं लैंगिक न्याय के विषयों पर ख़ास प्रकाश डालता है। इनमें से कुछ प्रमुख भाग इस प्रकार हैं –
-महिलाओं के लिए आरक्षण
कांग्रेस ने 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रावधान करने के लिए संविधान में संशोधन विधेयक पारित करने का वादा किया है।
केंद्र सरकार में 33 प्रतिशत नियुक्तियां महिलाओं के लिए आरक्षित करने के लिए सेवा नियमों में संशोधन करने का वादा किया है।
-महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण
समान कार्य के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान मजदूरी का भुगतान किया जाये।
कार्य बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए हर विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकनोमिक ज़ोन) में कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास और सुरक्षित परिवहन की सुविधाएं उपलब्ध कराइ जाएं।
महिलाओं के लिए नाईट-शिफ्ट या रात की पाली पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के इस प्रावधान को रद्द किया जाये।
एस.एच.जी – स्वयं सहायता समूह या सेल्फ हेल्प ग्रुप को महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का एक महत्वपूर्ण साधन बनाया जाए।
-महिलाओं का बचाव और सुरक्षा
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों की जांच के लिए एक मॉडल कानून पारित किया जाए और एक अलग जांच एजेंसी स्थापित हो।
‘सेक्सुअल हरैसमेंट ऑफ़ वीमेन एट वर्कप्लेसेस एक्ट २०१३’ की व्यापक समीक्षा की जाए और इसे सभी कार्यस्थलों में लागु किया जाए।
-महिला कल्याण
एकल, विधवा, परित्यक्त और निराश्रित महिलाओं को सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्यक्रमों को लागू किया जाए।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
“भारत को न केवल महिला विकास बल्कि महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की आवश्यकता है जो महिलाओं को हमारे विकास पथ की अग्रणी शक्ति बनाता है” ~ श्री नरेंद्र मोदी
45-पृष्ठ का भाजपा घोषणापत्र 8अप्रैल, 2019 को जारी किया गया। इसे संकल्प पत्र कहा गया है। यह घोषणापत्र 15 अध्यायों में विभाजित है। घोषणापत्र में ‘सबका साथ’, ‘सबका विकास’, और महिला सशक्तिकरण के सभी प्रावधानों पर ध्यान देने की उल्लेखना की गयी है।
यह घोषणा-पत्र भाजपा के वर्तमान चल रहे कार्यक्रमों पर ढाला गया है और इसमें महिलाओं के लिए कोई भी नई क्रांतिकारी योजनाएँ नहीं है। यह लक्ष्य और संख्या के दृष्टिकोण से कुछ योजनाओं पर चर्चा करता है। इस घोषणापत्र की महत्वपूर्ण विशेषताएं कुछ इस तरह हैं –
संवैधानिक संशोधन के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण रखने की प्रतिबद्धता।
एक व्यापक ‘वीमेन इन वर्कफोर्स’ कार्य-योजना तैयार करना जिससे अगले पाँच वर्षों में महिला कार्यबल के भागीदारी दर में वृद्धि हो।
महिलाओं के लिए बेहतर काम के अवसर पैदा करना। सरकारी खरीद के लिए 10% सामग्री वैसे MSMEs (माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज) से खरीदना जिनके कर्मचारियों में कम से कम 50% महिला कर्मचारी हों।
यह घोषणापत्र असंगठित क्षेत्र में कार्यरत माता-पिता की जरूरतों पर विशेष ध्यान देता है। यह उनकी जरूरतों को मद्देनज़र रखते हुए क्रेच कार्यक्रम को मजबूत करने की बात भी करता है। इसका उद्देश्य 2022 तक चाइल्डकैअर सुविधाओं की संख्या को तीन गुना बढ़ाना है।
ट्रिपल तालाक और निकाह हलाला जैसी प्रथाओं को प्रतिबंधित करने और समाप्त करने के लिए कानून पारित करना।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सख्त प्रावधानों को और भी अधिक प्राथमिकता देना। बलात्कार के मामलों की समयबद्ध जांच और परीक्षण करना। दोषियों को न्याय दिलाने के लिए फोरेंसिक सुविधाओं और फास्ट ट्रैक अदालतों का विस्तार करना।
-महिला कल्याण और स्वास्थ्य
पूरे भारत में सभी महिलाओं को प्रजनन और मासिक धर्म स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना। चल रही सुविधा योजना का विस्तार करना। सभी महिलाओं और लड़कियों को 1 रुपये में सैनिटरी पैड सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराना।
सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं को शामिल करने के लिए आयुष्मान भारत का कवरेज बढ़ाना। सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य और सामाजिक सहायता प्रणाली सुनिश्चित करना।
अगले पांच वर्षों में कुपोषण के स्तर को 10% से कम करना, ताकि पोशन अभियान के तहत कुपोषण में कमी का दर दुगना हो सके।
सभी महिलाओं के लिए अच्छी, उत्तम, सुलभ और सस्ती मातृ स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करना।
संयोग से पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में, पार्टी ने अपना रोडमैप केवल 7अप्रैल 2014 तक साझा किया था, जो नौ चरणों के लोकसभा चुनावों का पहला दिन था। भाजपा के 2014 के घोषणा-पत्र में, जिसे संकल्प पत्र कहा जाता है, महिलाओं के लिए कई प्रावधान थे जिनमें महिला आरक्षण बिल, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण, कल्याण और सुरक्षा के लिए विभिन्न योजनाएं शामिल थीं। इनमें से कुछ को इन 5 वर्षों में भुला दिया गया है।
यह खेदजनक है कि पार्टी द्वारा चुने गए 374 उम्मीदवारों में से अब तक केवल 45 महिलाएँ हैं, जो कि केवल 12% है। ऐसे आंकड़े के साथ, 2019 के चुनावों में महिलाओं के लिए प्रावधान अनिश्चित लग रहे हैं।
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (AITC)
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस उन पार्टियों में से है जिनमे महिला उम्मीदवारों की संख्या उच्चतम है। ऐसी ही एक दूसरी पार्टी है बीजू जनता दल (BJD)। तृणमूल कांग्रेस के 42 उम्मीदवारों में 17 (यानि 41%) महिला उम्मीदवार हैं।
67 पृष्ठ के AITC घोषणापत्र में महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करने के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। यह महिलाओं के रोजगार पर जोर देता है और इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि यह सशक्तिकरण राष्ट्र की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण है। इस घोषणापत्र की खास विशेषताएं इस प्रकार हैं:
-महिला कल्याण / आर्थिक स्वतंत्रता
कन्याश्री परियोजना पश्चिम बंगाल की वैश्विक पुरस्कार विजेता परियोजना है। इस घोषणापत्र में इसे राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाने का उल्लेख किया गया है।
विशेष महिला अदालतों की स्थापना करना, जिससे न्याय तेजी से दिया जा सके और महिलाओं पर अत्याचार के लिए कड़ी सजा सुनायी जा सके।
IPC (इंडियन पीनल कोड ) और CrPc (कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर) को संशोधित और पुन: व्यवस्थित करना, ताकि वे विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों और अत्याचारों को कम कर सकें।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एम)
इनका घोषणा-पत्र पिछले महीने जारी हुआ है। इसमें महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित बातें उजागर की गयी हैं:
सभी मौजूदा बजट में महिलाओं के लिए किये गए आवंटन को 30% से 40% तक बढ़ाना।
महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करना और लोकसभा और राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का भी समर्थन करना।
सभी महिलाओं के लिए वैवाहिक और विरासत में मिली संपत्ति के विषय में समान अधिकार के लिए कानून बनाना। निर्जन और तात्कालिक तलाक़ का शिकार हुईं महिलाओं को सुरक्षा और पुनर्वास प्रदान करना।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के दोषी पाए जाने वालों को रोकना और दण्डित करना ।
सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाना। यौन हिंसा और एसिड हमलों के पीड़ितों का, पूरी तरह से, पुनर्वास योजना के माध्यम से समर्थन करना।
पीसीपीएनडीटी अधिनियम का सख्त पालन (लिंग निर्धारण परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ) ।
महिलाओं के बारे में सार्वजनिक टिप्पणियों में सभ्य व्यवहार का पालन करने के लिए सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए एक आचार संहिता। महिलाओं का अपमान करने वाली असभ्य और गलत भाषा का उपयोग करने से रोकना।
और अन्य राजनीतिक दलों का क्या?
लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव घोषणा-पत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, हालांकि, ये इन दिनों एक वैकल्पिक सुविधा बन गयी है।
सत्तारूढ़ पार्टी (भाजपा) और विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी (कांग्रेस) ने महिला सशक्तीकरण के बारे में अपना दृष्टिकोण साझा किया है। NCP (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) समान श्रम कानूनों के बारे में और महिलाओं के लिए ‘समान काम, समान वेतन’ के बारे में बोलती है। सीपीआई (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) महिलाओं के लिए उनके प्रावधानों के बारे में चर्चा करता है। और एआईएडीएमके और डीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों के घोषणापत्र में महिलाओं के लिए कोई महत्वपूर्ण प्रावधान नज़र नहीं आता है।
एक महिला नागरिक के रूप में इन प्रावधानों के बारे में मेरी क्या समझ है?
महिलाओं के सशक्तीकरण की बात केवल बड़े वादों को साझा करने तक सीमित नहीं रह सकती है, क्योंकि इसके लिए बहुत कुछ काम करना और बदलाव लाना बाकी है। दोनों राष्ट्रीय दलों, भाजपा और कांग्रेस ने, महिलाओं के लिए कई प्रावधान जारी किए हैं और महिला सशक्तिकरण के संबंध में एक मजबूत दृष्टिकोण साझा किया है। लेकिन मैं अभी भी चुनावों के बाद वास्तव में होने वाले व्यावहारिक बदलावों के बारे में आश्वस्त नहीं हूँ। इस देश में हर दूसरी महिला की तरह, मेरे पास भी एक ठोस कारण है।
पहले के चुनाओं की तरह, 2019 के चुनावों में भी भारतीय राजनीति में महिला उम्मीदवारों को महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। महिला आरक्षण विधेयक को हर चुनाव के पहले पूर्ण समर्थन मिलता है। यह 20 साल से अधिक समय पहले पेश किया गया था, और तब से चर्चा में है। क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि हमारी आजादी के 70 साल बाद भी हम लैंगिक न्याय और महिलाओं के साथ भेदभाव खत्म करने की सिर्फ चर्चा ही कर रहे हैं?
तो क्या महिलाओं के मुद्दों के संबंध में पीढ़ियों से चली आ रही बड़े-बड़े वादे करने की आदत और अपनी बातों से मुकरने की परंपरा इस साल 2019 में भी ज़ारी रहेगी? यह मेरे लिए देखने की बात होगी।
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Present - India Lead - Education, Charter for Compassion, Co-Author - Escape Velocity, Writer & Social Activist. Past - DU, Harvard, Telecoms-India and abroad read more...
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