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गर्भ में ससुराल में,भीड़भरे बाज़ार में, नारी को इंसान होने का ही प्रमाण नहीं, तो क्यों उस नारी को गर्वांवित कर महिला दिवस मनाऊ मैं?
संकोच से भरा है मन, संशय से घिरा है मन क्यों खुद को महिमामंडित करवाऊं मै परत दर परत खुद पर,क्यों झूठ का मुलम्मा चढ़ाऊं मै। यूं ही झुनझुना थमा दिया गया, अपमान तिरस्कार दुत्कार सब परदों के पीछे छुपा दिया गया। क्यों बेवजह ये क्षणभंगुर प्रशंसा पीये जाऊं मैं, क्यों मिथ्या को सच मान एक झूठे छलावे में जियूं जाऊं मैं। नश्वर प्रेम,नश्वर सम्मान ..क्यों सिर्फ एक इस दिन के लिए हर अत्याचार को भूल जाऊं मैं। सीता अनुसूया मीराबाई तिरस्कृत हुईं अपमानित हुईं, हर युग में पाषाण बन क्यों अग्निपरीक्षा से गुजर जाऊं मै। क्यों इस एक दिन के छलावे को सच मान भ्रम में जियों जाऊं मैं। निर्भया आसिफा भंवरी ,इसी दुनिया में जन्मी थीं निर्मम बेदर्द और संवेदनाशून्य, हृदय की चीत्कार क्यों भूल जाऊं मैं। गर्भ में ससुराल में,भीड़भरे बाज़ार में नारी को इंसान होने का ही प्रमाण नहीं, तो क्यों उस नारी को गर्वांवित कर महिला दिवस मनाऊ मैं।
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