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मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए!

कमज़ोर होना जितना गलत नहीं उतना ख़ुद को कमज़ोर मान लेना है। जान देने का सौभाग्य मिले ना मिले, आवाज़ उठाने का हौसला खोना नहीं चाहिए।

कमज़ोर होना जितना गलत नहीं उतना ख़ुद को कमज़ोर मान लेना है। जान देने का सौभाग्य मिले ना मिले, आवाज़ उठाने का हौसला खोना नहीं चाहिए।

“हाँ, मानती हूँ मैं भी उन देशभक्तों की तादाद में शामिल हूँ, जिनकी देशभक्ति स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के 2  दिन पहले और दो  दिन बाद तक ही सीमित रहती  है।  टीवी पर देशभक्ति गाने सुनना, फिल्म देख लेना और ट्राफिक सिग्नल पर छोटे बच्चे से तिरंगा खरीद या तो उसके साथ एक सेल्फी ले लेना या साइड मिरर में लगा अपनी क्षणिक देशप्रेम को दिखाना, यही सब है गणतंत्र दिवस का मतलब।

तो, और कर भी क्या सकते हैं? बॉर्डर पर जाकर जान तो नहीं दे सकते ना।

यार, सेना की परीक्षा पास करना, NDA का एग्जाम निकालना, शारीरिक तौर पर सबका सशक्त होना, ये सब ज़रूरी है ना देश के लिए लड़ने के लिए।

फिर हम लड़कियाँ हैं, बचपन से अगला घर कैसे सँभालेंगे, इस ट्रेनिंग से ही जी इतना भर जाता है कि दिमाग़ में कुछ और करने का फितूर आता ही नहीं। जब माता-पिता के घर में हो तो उनकी इज़्ज़त बनो और ससुराल जाकर उन लोगों की। हमारी ज़िन्दगी में देश के लिए जगह है ही कहाँ? चाहूँ तो भी इतनी हिम्मत नहीं है कि ये सब ज़िम्मेदारियाँ छोड़कर देश-सेवा में अपना समय दे सकूँ।”

नीना के ये शब्द भारत की हर गृहिणी की कहानी कह रहे थे। उसने अपनी माँ और दीदी को भी यही सब करते तो देखा था। ‘छुट्टी’ से ज़्यादा मायने नहीं थे 15 अगस्त और 26 जनवरी के हमारे घर में। लेकिन, 5 दिसंबर की वो रात मेरी ज़िन्दगी बदल चुकी थी।

लहू-लुहान पड़ी वो लड़की, जैसे किसी ने नोच खाया हो, जैसे हैवानियत से कुचला मांस का कोई टुकड़ा हो। समीर और मैं पूना से लौट रहे थे तभी गाड़ी चलाते हुए समीर की नज़र उस पर पड़ी। एक आर्मी-ऑफिसर का साहस उसे बेहिचक उस लड़की के पास ले गया। उसकी हालत देख हम समझ गए थे कि अभी उसे एक अच्छे डॉक्टर की ज़रूरत थी जो उसकी जान बचा सके।  वो लड़की जैसे ज़िंदा लाश थी। ना घर का पता, ना अपना नाम बताने का भी सामर्थ्य बचा था उसमें। बस थे तो उसकी आत्मा पर हुए वो वार, वो ज़िल्लत, वो नफ़रत, ख़ुद के लिए इस दुनिया के लिए।

समीर ने गार्डियन बन सिग्नेचर कर दिए। हॉस्पिटल का खर्चा भी दिया। तीन दिन वहीं रुकने के बाद बॉम्बे के एक रिहैब सेंटर में उसके रुकने की व्यवस्था की। उसके लिए यही देशभक्ति थी। इंसानियत भारत को जोड़े है और जोड़े रहेगा।

“समीर! सिर्फ पांच दिन के लिए ही तो आए थे, वो भी ऐसे ही निकल गए। ना हमारी कोई बात हुई, ना तुम मुझे कहीं घुमाने ले गए। और अब, सुबह निकल पड़ोगे अपना वही, इतने साल पुराने हरे रंग के बोरे को लेकर।” और, मैं और समीर खिलखिला दिए।

वो समीर के साथ मेरी आख़िरी खिलखिलाहट थी। आज साथ है तो सिर्फ उसका जज़्बा, माँ भारती के लिए वो प्रेम, इंसानियत, ज़िंदादिली और सच्ची देश भक्ति।

हर पल उसका जूनून मेरे साथ रहता है, जब भी, किसी को मेरी मदद की ज़रूरत होती है।

हर वक़्त उसका साहस मेरे साथ होता है, जब मुझे, ख़ुद के डर से जीत कर आगे जाना होता है।

हर घड़ी वो मेरी परछाई बनकर चलता है, जब मुझे, कोई “स्त्री” कह बेड़ियों में बांधना चाहता है।

नीना ने कुछ गलत नहीं कहा था लेकिन उसका उस सोच को स्वीकार कर लेना मुझे गलत लगा। कमज़ोर होना जितना गलत नहीं उतना ख़ुद को कमज़ोर मान लेना है। हम रहें या ना रहें हमारा अस्तित्व नहीं मिटना चाहिए। जान देने का सौभाग्य मिले ना मिले, आवाज़ उठाने का हौसला खोना नहीं चाहिए।

और…

हम रहें या ना रहें भारत ये रहना चाहिए !”

“जय हिन्द  जय भारत “

 

About the Author

Shweta Vyas

Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve read more...

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