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कर्मों का फल

रोज की तरह रमा घर का काम कर रही थी। तभी पड़ोस की मुनिया चाची आई। मुनिया चाची के स्वभाव से सब परिचित थे। वो सच बोलती थी जो की बहुत कड़वा लगता था सभी को, सेठाईन डर गई ना जाने क्या बोल जाए।"

रोज की तरह रमा घर का काम कर रही थी। तभी पड़ोस की मुनिया चाची आई। मुनिया चाची के स्वभाव से सब परिचित थे। वो सच बोलती थी जो की बहुत कड़वा लगता था सभी को, सेठाईन डर गई ना जाने क्या बोल जाए।”

रमा आज भी इस आस से सेठ के दरवाजे पर खड़ी थी की आज कुछ राशन मिल जाए। लगातार दो दिन से ऐसे ही सेठ के घर आती, सेठाईन उससे घर का सारा काम कराती और फिर घंटों उसे बाहर खड़ा रखती और डांट-फटकारती फिर कहीं जाकर एक दिन का राशन देती। बच्चों की भूख के आगे बेबस रमा रोज आती और अपने हक के राशन के लिए मशक्कत करती जबकि सेठ गरीबों के हिस्से का राशन कालाबाजारी कर दुगने – तिगुने दाम में बेच देता था।

रोज की तरह रमा घर का काम कर रही थी। तभी पड़ोस की मुनिया चाची आई। मुनिया चाची के स्वभाव से सब परिचित थे। वो सच बोलती थी जो की बहुत कड़वा लगता था सभी को, सेठाईन डर गई ना जाने क्या बोल जाए।

सेठानी ने उन्हें बिठाया और अपने गुरबत के दिनों का हाल बताने लगी। हम ऐसे ही अमीर नहीं बने, बहुत दुःख देखें हैं, दो – चार दिन बिना खाए गुजर जाता था। लेकिन मैं जिसके घर काम करती थी वो बहुत ही अच्छी थी, वो मेरा बहुत ख्याल रखती थी और मेरे बच्चों से प्यार करती थी।

हां तभी तो आज तू सेठानी बनी हुई है, शायद उसने तेरा खुन नहीं चूसा, जैसे तू सबका खून चूस रही हैं, पुराने दिन याद कर लिया कर जो तेरे पास है कहीं किसी की बद्दुआ से छीन न जाये।

“मुनिया चाची क्या आप भी कुछ भी बोल देती हैं”।

“बोलती तो सच बात ही ना, क्यों बेचारी रमा का ख़ून चूसती हैं। सरकार के दिए हुए राशन में से भी तुम सबको देने में कटौती करती हो भगवान हर पाप का हिसाब लेते हैं याद रखना मेरी ये बात। अभी भी समय है, सुधर जा नहीं तो भगवान जब इंसाफ करने लगेंगे तो तुझे बड़ा कष्ट होगा” – मुनिया चाची ने कहा।

एक दिन अचानक सेठानी के बच्चे को पोलियों ने जकड़ लिया, अब वो पैर से ठीक से नहीं चल पा रहा था। डॉक्टर को दिखाया लेकिन अब समय निकल चुका था। आज बार – बार सेठाईन को मुनिया चाची की बातें तीर सी चुभ रही थी, लेकिन कहा तो उसने सच ही था। सेठाईन अपने आप को कोस रही थी, क्यों उसने लालच किया। भगवान ने तो खाने- पीने के लिए तो काफी दे रखा था।

मोहल्ले के सभी लोग एक मुंह से यही कहें जा रहे थे की जैसी करनी वैसी भरनी। ये सेठ और सेठाईन के कर्मों का फल हैं जो उसके बच्चे के सामने आया है।

सेठ तो नहीं बदला लेकिन सेठाईन बिलकुल बदल गई, दान- पुण्य करने लगी। भूखों को खाना खिलाती, अच्छे कर्म करने लगी और बिना वजह किसी को सताना छोड़ दिया।

दोस्तों सभी को अपने पुराने दिन नहीं भूलने चाहिए। कल अगर आप गरीब थे तो अमीर होने के बाद अपने आपको विनम्र रखें, वहीं काम मत करें जिसका कभी आप विरोध करते थे क्योंकी आपके कर्म आपके आगे जरूर आयेंगे। इसीलिए सबका सम्मान करें, किसी का शोषण न करें। अपने पद का ग़लत इस्तेमाल ना करें।

मूल चित्र : unsplash

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Pragati Tripathi

This is Pragati B.Ed qualified and digital marketing certificate holder. A wife, A mom and homemaker. I love to write stories, I am book lover. read more...

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