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“कुछ देर के लिए खामोशियाँ ही बेहतर है, बोलने पर अब सुनता ही कौन है?” क्या खामोश रहने में वाकई समझदारी है ?
कुछ देर के लिए खामोशियाँ ही बेहतर है बोलने पर अब भला सुनता ही कौन है? मगन है वो बसेरों में अपने तकलीफों को अब देखता कौन है?
झूठ बोल रहे हैं चिख-चिख कर पर तेरे झूठ को सच अब समझता ही कौन है? झूठ कितना भी चीख चीख कर बोले पर सच को आज तक दबा पाया ही कौन है?
कुछ देर के लिए खामोशियाँ ही बेहतर है बोलने पर अब सुनता ही कौन है? तकदीर में जो लिखा है वो मिलकर ही रहेगा हाथों की लकीरों को भला मिटा पाया ही कौन है? कुछ देर के लिए खामोशियाँ ही बेहतर है बोलने पर अब भला सुनता ही कौन है?
मूल चित्र : pexel
Kuch nahi hoker bhi bahut kuch hu
माना झूठ बोलना गलत है, लेकिन ऐसे कई झूठ बोलते हैं हम अपने बच्चों से…
सच : कितना कड़वा?
अब और नहीं! अब वक़्त है उस पुरानी और झूठी सीख को बदलने का!
कुछ कहना था मुझे आज तुमसे
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