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तलाश है मुझे अपने आप की – अब बहुत हुई जंग, छोड़ो मेरा दामन, हट जाओ परे, सबसे, मेरे ख्याल और मेरा ज़हन से।
दफ़न सा कुछ अंदर, सुकून नहीं देता, उछलता है इस कदर, मरने भी नहीं देता।
क्या हो तुम, जो इस तरह मुझे समेटे हो, परत दर परत, बस गहरे हो, गहरे हो।
मायूसी का कारण कभी, कभी बंद जुबां का, बन जाओ लावा कभी, कभी सिर्फ धुंआ सा।
मकसद तो बतलाओ, अपने वजूद का, ख़त्म करने मुझे, या और तराशने को बैठे हो, बुझा देने मेरे आग-ऐ-जूनून को, या भड़का देने मेरे सब्र को बैठे हो।
हारने लगी हूँ अब, तुम्हें हराते-हराते अब बहुत हुई जंग, छोड़ो मेरा दामन, हट जाओ परे, सबसे, मेरे ख्याल और मेरा ज़हन से।
तलाश है मुझे अपने आप की, ना चाह तुम्हारे नाम की, खोजने दो अब, मुझे मेरे मुकाम खुद-ब-खुद पा लेने दो नए आयाम।
ये “यादों का पिटारा” कबाड़ में बेच आऊं, चाहे ना कोई दे इनका कुछ दाम।
मूल चित्र: Pexels
Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which
उस चांदी की अंगूठी को निकाल फेंकना! निशाँ ये हाथ पर नहीं ज़मीर पर कर जायेगी
हाँ औरत हूँ! मुझे जीने दो……
ऐ कलम! अब मत दे कोई उपनाम मुझे!
माँ जब तुमने मुझे छुआ था!
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