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मेरा घर कौन सा है, बस इतना बता देना - वो, जो कहता है बेटा वही तेरा घर है, या वो, जो कहता तू दुजे घर से आई है।
मेरा घर कौन सा है, बस इतना बता देना – वो, जो कहता है बेटा वही तेरा घर है, या वो, जो कहता तू दुजे घर से आई है।
एक बात पूछूँ, हो सके तो समझा देना, मेरा घर कौन सा है, बस इतना बता देना।
वो, जो कहता है कि बिदाई हो चुकी है, अब तू, हमारे लिए परायी हो चुकी है; या वो, जिसने कभी अपना माना ही नहीं, परायेपन का चश्मा, उतारा ही नही।
वो, जो कहता है बेटा वही तेरा घर है, अब तेरा जीना-मरना उनके संग है; या वो, जो कहता तू दुजे घर से आई है, हैसियत इस घर में यही, तू एक लुगाई है।
वो, जो घावों पे मरहम लगाता था कभी, साथ में, ससुराल नाम का नमक भी छिड़कता था; या वो, जो आज नमक के नाम पर ज़ख्म देता है, मरहम लगाना तो दूर, ज़ख्म को कचोटता है।
वो, जो आँसू देखकर भी अनदेखा कर देता है, घर की खुशियों से, नदारद रखता है; या वो, जो आँखों में आँसुओं का कारण है, जहाँ मेरा हँसना, बस दिखावे का आलम है।
बस मुझको इतना बतला दो, हो सके तो इतना समझा दो; क्या गलती हो गयी, क्यूँ मैं परायी हो गयी? ना मायका ही मुझको संजो पाया, ना ससुराल मुझको पिरो पाया।
जानती हूँ, जवाब नहीं है तुम्हारे पास, सच को, नहीं दे सकोगे तुम आवाज़; आज तक, एक झूठ से दिल बहलाया है मेरा, सच, मैं जानती हूँ कि बस एक शरणार्थी हूँ।
जानती हूँ शक्ति-स्वरूपा हूँ, तुम्हारे लिए देवी रूपा हूँ; दो कांधों पर बोझ इसी लिए डाला है, मायके का संस्कार और ससुराल का मान- संजोना तो आजमाने का बहाना है।
नहीं हूँ कमज़ोर मैं, जानती और मानती भी हूं; मैं तैयार हूँ उठाने को हर बोझ, पर क्या तब होगा कोई मेरा अपना घर? शायद हाँ! शायद ना!
एक बात कहूँ जो समझ सको, दर्द होता है जो बांट सको; बेघर होने का दर्द गहरा होता है, टीस उठती है सीने में- हाँ!ये दर्द गहरा होता है!
एक हुड़क सी दिल में होती है, इसी लिए शायद ये पूछ बैठी यूँ; हो सके तो कभी सोच देना; मेरे सवाल का जवाब भी ढूंढ लेना।
एक बात पूछूं हो सके तो समझा देना, मेरा घर कौन सा है बस इतना बता देना।
मूल चित्र: Pexels
Myself Pooja aka Nirali. 'Nirali' who is inclusion of all good(s) n bad(s). Not a writer, just trying to be outspoken. While playing the roles of a daughter, a wife, a mother, a read more...
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