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ज़िन्दगी के भिन्न -भिन्न पहलूओं का बेहद उम्दा वर्णन करती कविता।
बहती नदी की धार सी कल-कल करती ज़िंदगी इस छोर से उस छोर तक निरंतर बहती जा रही।
अलसाई हुई शाम सी करवट बदलती ज़िंदगी सुबह के इंतजार में निशा गले लगा रही।
पत्तों पर ओस की बूंद सी गिरती संभलती ज़िंदगी ऊषा की पहली किरण को खुद में समेटे जा रही।
बदलते हुए मौसम सी पल-पल बदलती ज़िंदगी सावन में आई बहार को पतझड़ भी है समझा रही।
वर्षा की पहली बौछार सी सोंधी महक सी ज़िंदगी जीवन की सूखी धरा पर नई कोपलें उगा रही।
सूरज के प्रतिबिंब सी लहरों पर दमकती ज़िंदगी नव वर्ष में नई रोशनी नई आशाएं जगा रही।
मूल चित्र : pexels
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