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जीवन में शून्य हो कर भी जीवन में खुश रहने की महत्ता सिखाती कविता
कुछ शून्य सा कुछ कतरा जैसा, मैं बस मैं हूँ. और मैं नहीं हूँ तेरे जैसा मैं क्यों समझाऊं उन्हें जो मुझे समझना नहीं चाहते, मैं क्यों बहलाऊं उन्हें जो मुझे सुनना भी नहीं चाहते
मैं जीने आया हूँ और जी रहा हूँ, ये मेरा जीवन तुम क्यूँ बनाना चाहते हो ? महज़ एक तमाशा जैसा शून्य हूँ मैं , सिफ़र हूँ मैं जो भी हूँ बस यही हूँ मैं और मैं खुश हूँ
औरों को खुश करूँगा जब मैं करना चाहूँगा, औरो को समझूँगा भी लेकिन जब मैं समझना चाहूँगा एक एक पल अनमोल है मेरे जीवन का यदि तुम ना समझो, तो सब कुछ बस.. रहने दो अब वैसा ही ,सालों से है जैसा |
मूल चित्र : Pexels
An ordinary girl who dreams
रंजनी हूँ! मैं, अब सिर्फ मैं हूँ
सुनो! मैं भी इंसान हूँ…बिल्कुल तुम्हारी ही तरह!
अब न मैं अबला हूँ, मैं आज की वुमनिया हूँ!
अब तू ही बतला दे ना माँ, क्या इतनी बुरी हूँ मैं माँ?
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