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करवा चौथ – एक परंपरा जिसमें बदलाव की सख्त ज़रुरत है आज

करवा चौथ का त्यौहार मनाना ही है तो इसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं पर ही क्यों? जब खानपान, रहन-सहन, रिश्ते नाते, सब बदल गया है, तो ये चीजें क्यों नहीं बदली? 

करवा चौथ का त्यौहार मनाना ही है तो इसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं पर ही क्यों? जब खानपान, रहन-सहन, रिश्ते नाते, सब बदल गया है, तो ये चीजें क्यों नहीं बदली? 

करवा चौथ – एक व्रत, एक परंपरा जिसका अब विश्लेषण करना ज़रूरी है। हमारी दादी, परदादी के ज़माने से चली आ रही परंपरा, जहां शादी-शुदा औरतें अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और रात को चांद देखकर व्रत तोड़ती है। ये वो दौर था जब औरतें घर संभालती थी और सारा दिन घर के अंदर रहकर ये व्रत रख सकती थी।और इस वजह से ये उनके लिए उतना कठिन नहीं था।

दौर बदला, आदमी बदला औरतें भी बदल गई। औरतें घर के बाहर जाकर आदमियों से कंधे से कंधा मिलाकर काम करने लगी, मगर इस व्रत का स्वरूप अभी भी वैसा ही है, ज़्यादातर इलाकों में। नॉर्थ यूपी में तो ससुराल वाले प्राण जाए पर वचन न जाए, ऐसे मानते हैं या फिर यूं कहें, मनवाते हैं। भला हो हिंदी फिल्मों और सीरियलों का जिन्होंने इसमे और तड़का ही लगाया है।

क्या आपको ये बात कभी खटकी नहीं की घरेलू हिंसा, औरतों के प्रति बढ़ते अपराध के ग्राफ जिस जमीन पर बढ़ रहे हो उसी जमीन पर करवा चौथ पर पति की लंबी उम्र के लिए सारा दिन निर्जला रहकर ऐसे व्रत, उपवास भी रखे जा रहे है? ये क्या है? क्या ये सच में हो रहा है या दिखाया जा रहा है? क्या ये ढोंग नहीं? दिखावा नहीं? या फिर समाज में शो ऑफ करने की मजबूरी…या परंपरा का बोझ?

इनमे से अगर कुछ भी है तो यकीनन अच्छा नहीं है।

समाज क्या कहेगा?

जब खानपान, रहन-सहन, पहनावा ओढ़ावा, रिश्ते नाते, शादी-ब्याह, बोल-चाल, त्योहार सब कुछ बदल गया है, तो ये कुछ चीजें क्यों नहीं बदली? क्या इनका स्वरूप बदलना क्या लाजमी नहीं था?

इसका कारण ये है कि शायद हम बाहर से बदल रहे है या बदलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मन से अभी भी एंपावर होना बाकी है।अभी भी व्रत ना रखने पर पति के संग बुरा हो जाने की शंका मन में होती है।अभी भी ये लगता है कि व्रत नहीं रखा तो कहीं पति को तो कुछ नहीं हो जाएगा? लोग क्या सोचेंगे? समाज क्या कहेगा?

कभी हमने ऐसा नहीं भी सोचना चाहा तो हमारा सामाजिक तना बना ऐसा है कि हमें इसकी तरफ खींच ही लेता है। चूड़ी, बिंदी, मेहंदी सारी, टीवी प्रोग्राम्स, पिक्चर्स सब इस रंग में ऐसे रंग जाते है कि हम सब भूल जाते है, हाँ हम सब भूल जाते हैं और पति के लिए व्रत खुशी खुशी रख लेते है। ये यकीनन अच्छा है मगर अगर आप अपने साथ ज़्यादती करती हैं तो ये ग़लत है।

सच तो ये है कि सारे रीति-रिवाज़, व्रत उपवास औरतों को ही ध्यान में रखकर बनाए गए ‘थे’….’बनाए रखना’ अच्छा है मगर जब सब बदल रहा है तो ये क्यों बदल कर बना नहीं रह सकता? क्यों नहीं अब मर्द ये व्रत औरतों के लिए रख सकते? क्योंकि हमने ये कभी उम्मीद ही नहीं की और बिना मांगे तो मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती। सच बात तो ये है कि हमने कपड़े, जबान, मेकअप तो बदल लिया लेकिन अभी भी बहुत कुछ बदलना बाकी है। अभी ऐसी सारी परपंराओं को बदलना बाकी है जिसका सारा बोझ केवल एक के ही हिस्से आया है।

फिर वो चाहे वो अपने लाइफ पार्टनर की लंबी उम्र के लिए व्रत रखना ही क्यों न हो?

मूल चित्र : YouTube 

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