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‘क्यों नहीं लौटता मेरा बचपन, वही बेफिकर जीने का तरीका’- कभी न कभी हम सबने अपने बचपन को इसी तरह याद किया है, इसी तरह पुकारा है।
गुजरा हुआ बचपन, याद आता है कभी-कभी हमें इतना, वो बड़े से आंगन में खेलना, झूलना बेफिकर चाहे जितना।
वो साथी-संगी, भाई-बहनों का साथ,और बहुत कुछ है छूटा, क्यों लगता है कभी-कभी, सपनों की तरह ही सब था झूठा।
बेतहाशा चली आती हैं यादें, निकल कर मन के झरोखों से, पता ही न चला, फिसल कर चला गया बचपन कब हथेली से।
बारिशों का मिट्टी पर पड़ना, वो सोंधी सी खुशबू का आना, वो बचपन की यादें, जिनका लगा रहता है हमेशा आना-जाना।
बारिश में भरी गली में चलाना, वो बनाकर कागज की नाव, फिर चुपके-चुपके से लेकर आना, घर में कीचड़ भरे गंदे पाँव।
माँ का वो बराबर डाँटते जाना, साथ में मेरी फिकर करते जाना, भइया का मुझको चिढ़ाना, और मेरे रोने पर मुझे मनाने आना।
गुस्से में भी माँ का प्यार झलकना, और माँ के हाथों से खाना, हर बात पर खिलखिला कर, बेफ़िक्री से हँस कर भाग जाना।
मिट्टी के घरौंदे बनाना, पेड़ से तोड़ना इमली लेना चटखारे, माली न कर दे शिकायत, फिरते थे यहाँ-वहाँ इसी डर के मारे।
मम्मी से छिपाकर के पहनना, वो सुंदर सी कामदार साडी़, चला करती थी निराले खेलों से, बचपन की वो शानदार गाड़ी।
स्कूल मे फिर जाने का, फिर से बच्चा बनने को जी करता है, एक बार दोबारा गुड़िया से खेलने का, मेरा बहुत जी करता है।
क्यों नहीं लौटता मेरा बचपन, वही बेफिकर जीने का तरीका, अब क्यों अपेक्षित है मुझसे हर किसी को, जीवन का सलीका।
सताती हैं यादें बचपन की, तो उन्हें कैद तस्वीरों मे ढ़ूँढ लेती हूँ, बेटी के बचपन में ही मैं भी, अपना बचपन फिर से जी लेती हूँ।
मेरी कविता पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया।
‘अच्छा पढ़ें और बढ़िया पढ़ें’
मूलचित्र: Pixabay
Hi, I am Smita Saksena. I am Author of two Books, Blogger, Influencer and a
काश कोई लौटा दे मेरा वो मासूम सा, नादान सा बचपन!
आज फिर से बचपन बहुत याद आया
बचपन के वो दिन…
बेटी – उम्मीद, या अनचाही सी एक जिम्मेदारी? एक सवाल
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