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“सारे फ़र्ज़ निभाते करते, हर गलती का बोझ उठाये भाभी, बिलकुल भी विशवास नहीं है, फिर काहे कोई लाए भाभी ?” एक भाभी मन में उठते कई सवाल।
भाई मेरे प्यारे भाई, जल्दी से ले आओ भाभी,
मैं बैठकर आराम करूँ, काम सारा करेगी भाभी;
मम्मी-पापा की सेवा करे जो, ऐसी ही तुम लाओ भाभी,
इन प्यारी अठखेलियों के बीच, घर में आई प्यारी भाभी;
सुंदर और सुशील, खुशियों का पिटारा भाभी,
सबकी उम्मीदों पे खरी उतरे, सारे फ़र्ज़ निभाए भाभी;
सबको खुश करते-करते, अपनी ख़ुशी लुटाये भाभी,
आदर्श बहु बनने के ख़ातिर, सबके नाज़ उठाये भाभी;
समय उड़ गया पंख लगाकर, भीतर से मुरझायी भाभी,
सबके लिए गलत हो गई, किस-किस को समझाए भाभी;
दीदी से बात करुँगी तो समझेगी, खुद को तसल्ली दिलाये भाभी,
जब उसने भी ऊँगली उठा दी, तब किससे उम्मीद लगाए भाभी;
माँ-बाप का साथ दिया, क्योंकि होती पराई भाभी,
अपनी पीड़ा छुपाने के लिये, खुद से करे लड़ाई भाभी;
सबका बुढ़ापा आएगा इक दिन, ये सुनकर चुप हो जाये भाभी,
माँ-बाप गलत, फिर भी अपने, लेकिन होती परायी भाभी;
सबकी नाराज़गी सहकर, अपने फ़र्ज़ निभाए भाभी,
आत्मसम्मान बचाने की ख़ातिर, गरत में गिरती जाए भाभी;
भाई भी जो साथ दे उसका, जोरू का गुलाम बनाये भाभी,
सबके ताने सुनते-सुनते, अपना सुख चैन गंवाये भाभी;
सारे फ़र्ज़ निभाते करते, हर गलती का बोझ उठाये भाभी,
उमर बीत गई करते-करते, फिर भी कामचोर कहलायी भाभी;
खुद पे पड़े तो सास-ससुर गलत, तब दिलासा दिलाये भाभी,
भाभी बोले तो माँ-बाप सही, तुमने आग लगाई भाभी;
बिलकुल भी विशवास नहीं है, फिर काहे कोई लाए भाभी,
बेटी जाती बहू है आती, होती अपनी परछाई भाभी;
समझ के उसके भी साथ चलो, ननद की सहेली कहलाए भाभी।
मूल चित्र: Pexels
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रक्षाबंधन
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