A story of love, loss and second chances by Nikita Singh, releasing this Valentine’s Day.
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धारा 377- जिस समाज में लोग आज भी इस विषय पर बात करने से हिचकिचाते हैं, क्या इसे वहाँ सामाजिक स्वीकृति मिलेगी? मन में उठते हैं ऐसे कई सवाल।
“158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से निरस्त कर दिया।”
यह सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला है। अब भारत भी उन 25 देशों में शामिल हो गया है, जहाँ समलैंगिकता वैध है। इस फैसले से LGBTQ समुदायों के लोगों के बीच एक ख़ुशी की लहर है। हो भी क्यों न, आखिर ये उनके अधिकार की जीत है। निजता के अधिकार के तहत उन्हें भी अपनी जिंदगी, अपने तरीके से जीने का पूरा हक़ है। एक लम्बे संघर्ष के बाद, जीत का सूर्योदय हो ही गया। लेकिन, दुनियाभर में अब भी 72 देश और क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ समलैंगिक संबंध को अपराध माना जाता है।
मेरे मन एक बात रह-रह के उठ रही है। जहाँ लोग आज भी प्रेम या अंतरजातिय विवाह पर खुलकर बात नहीं करते और इसे दबाने की भरपूर कोशिश करते हैं, क्या वहाँ लोग इसे अपनी स्वीकृति देंगे? आज भी, दहेज़-प्रथा, बाल-विवाह और अन्य रुढ़िवादी नियमों और कायदों के खिलाफ़ कानून बनने के बावजूद, समाज इसे परंपरा और रिवाज के नाम पर आगे बढ़ा रहा है।
ऐसे में, क़ानूनी फैसला आने और स्वीकृति मिलने के बाद, क्या इसे वहाँ सामाजिक स्वीकृति मिलेगी, जहाँ लोग आज भी इस विषय पर बात करने से हिचकिचाते हैं?
इस मुद्दे पर हर किसी की अपनी राय और सोच है, पर बदलाव के साथ आगे बढ़ने में ही भलाई है। ये हर किसी की निजी पसंद और नापसंद है।
धीरे-धीरे,छोटे क़दमों से ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है,और ये असंभव नहीं है। सब को साथ बढ़कर बदलाव की ओर अग्रसर होना होगा, बिना किसी अन्धविश्वास को बढ़ावा देकर।
प्रथम प्रकाशित
Young Writer
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