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"यहाँ का कोई भी रिवाज़ समझ नहीं आता, जहाँ हर दिन कोई आता है - और मुझे थोड़ा और छीन कर ले जाता है ...." क्या आपको ऐसा रिवाज़ समझ आता है?
“यहाँ का कोई भी रिवाज़ समझ नहीं आता, जहाँ हर दिन कोई आता है – और मुझे थोड़ा और छीन कर ले जाता है ….” क्या आपको ऐसा रिवाज़ समझ आता है?
मेरा सामान खो गया है –
एक बस्ता और कुछ किताबें,
मेरे स्कूल के जूते और स्कूल ना जाने के बहाने ..
एक पेन्सिल जिसमें पीछे रबर लगी थी,
और कुछ रंग जिनसे मैं अपनी आत्मा से जुड़ी थी…
माँ-बाबा भी कहीं खो गये हैं,
या मानो जैसे सब चोरी हो गये हैं ..
अब रह गयी है ये अजीब सी जगह,
जहाँ हर दिन कोई आता है-
और मुझे थोड़ा और छीन कर ले जाता है ..
मेरे सब खिलोने भी खो गये हैं,
और अब सपने भी नहीं आते ..
पता नहीं क्यूँ यहाँ-
जब चोट लगे तो गले लगाने कोई नहीं आता ..
और मुझे यहाँ का कोई भी रिवाज़ समझ नहीं आता,
कुछ कहो तो यहाँ की मासी बहुत मारती है ..
आपको मिला क्या मेरा सामान?
काश कि मैं अपने घर जा सकती ..
सच अब मैं कभी बहाना नहीं बनाऊँगी,
बस माँ के पास पहुँचा दो मुझे,
फिर मैं हर रोज़ स्कूल जाऊँगी!
प्रथम प्रकाशित
मूल चित्र: Pexels
An ordinary girl who dreams read more...
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