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"ये गुब्बारे टूटने वाले सपनों की तरह होते हैं", मगर वो गुब्बारा मिलते ही मानो उसे दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना मिल गया हो। ऐसा क्या था उस गुब्बारे में?
“ये गुब्बारे टूटने वाले सपनों की तरह होते हैं”, मगर वो गुब्बारा मिलते ही मानो उसे दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना मिल गया हो। ऐसा क्या था उस गुब्बारे में?
अपनी खिड़की पर बैठी वो अक्सर आते-जाते लोगों को देखती रहती थी, पर पूरा दिन वो इंतज़ार करती थी गुब्बारे वाले का। रंग-बिरंगे गुब्बारे ले कर जब वो गली में आता था, तो मुहल्ले के सारे बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती थी। वो भी खुशी से खिल जाती थी, आँखों में मानो कोई चमक आ गयी हो।
पता नहीं, ऐसा क्या था इस पल में, कि वो सब कुछ भूल कर उसमें खो जाती थी। वो अलग-अलग रंगों के गुब्बारे मानो कई सपने ले कर आते थे..उड़ते हुए, यहाँ-वहाँ फुदकते हुए सपने..
एक दिन शाम हो गयी पर गुब्बारे ले कर कोई नहीं आया।
वो खिड़की पर आती और हर बार निराश हो कर वापिस चली जाती।
रात हो गयी।आज वो नहीं आया। वो एक पल, जिसका वो पूरा दिन इंतज़ार करती थी..आज नहीं आया..
अरे! ये क्या? अगले दिन, सुबह-सुबह घंटी बजाते हुए गुब्बारे वाला आया है। अरे वाह! आज तो कई आकार के गुब्बारे हैं। गली में ऐसे गुब्बारे पहले किसी ने नहीं देखे थे। फिर क्या, बच्चों की भीड़ लग गयी।
इतना शोर सुनकर वो खिड़की की तरफ भागी। उसके चहरे की खुशी देखने लायक थी। आज गुब्बारे वाला उसकी खिड़की पर आया और उसने पूछा-“कौन सा गुब्बारा चाहिए बिटिया?”
वो बोली,”नहीं-नहीं। मैं क्या करूँगी गुब्बारे का बाबा..चाची कहती हैं, “ये गुब्बारे सपनों की तरह होते हैं..टूटने वाले सपने मुझे नहीं चाहिए..
गुब्बारे वाले ने पूछा, “और माँ क्या कहती है?”
अचानक उसकी आँखों की चमक कहीं ओझल सी हो गयी। वो बोली, “माँ तो नहीं है।” ये कहकर वो अंदर भाग गयी।
गुब्बारे वाला थोड़ी देर तक खिड़की से उसे देखता रहा और फिर एक गुब्बारा वहीं खिड़की पर बाँध कर चला गया।
साथ में एक कागज भी लगा गया, जिस पर लिखा था-
“सपने टूटने के डर से सपने देखना नहीं छोड़ा करते लाडो”- तुम्हारी माँ..
गुब्बारा मिलते ही मानो उसे दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना मिल गया हो। और वो कागज, वो कागज उसने आज भी संभाल के रखा है।
प्रथम प्रकाशित
मोल चित्र: Pixabay
An ordinary girl who dreams read more...
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